अलवर. कोरोना की सबसे ज्यादा मार रिक्शा चलाने वाले, चाय की टपरी वालों, प्लंबर और माल ढुलाई कर पेट भरने वालों पर पड़ा है. मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. सरकार की तरफ से कुछ घंटे के लॉकडाउन में रियायत दी गई है, लेकिन उसमें भी पुलिस की सख्ती के कारण उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
लॉकडाउन में मजदूर वर्ग परेशान कैसे चुकाएंगे कर्ज?
जिले में करीब एक लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं, जिनका कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है. काम न मिलने के कारण बहुत से लोगों ने कर्ज भी ले रखा है लेकिन चुका नहीं पा रहे हैं. बिजली का बिल, पानी का बिल, बच्चों के स्कूल की फीस, रिक्शे की किस्त, दुकान का किराया चुकाने तक के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल हो रहा है. सरकार की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही है.
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वैसे तो कोरोना और लॉकडाउन के चलते सभी लोग परेशान हैं. हर वर्ग इससे प्रभावित है लेकिन रिक्शा चलाने वाले, चाय बेचने वाले, प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, नाई, धोबी और सड़क के किनारे दुकान लगाकर अपने परिवार का पेट भरने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. लॉकडाउन के चलते कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है. कुछ घंटे की सरकार की तरफ से छूट दी गई है, लेकिन उस दौरान पुलिसकर्मियों की सख्ती से वे परेशान हैं. कोरोना के डर से लोगों ने भी दूरियां बना ली है. ऐसे में यह लोग भूखे रहने को मजबूर हैं. दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है. रिक्शे की किस्त चुकाने, बिजली का बिल चुकाने, पानी का बिल जमा करने सहित कई अन्य खर्चों के लिए लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है.
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एक बार ही मिला राशन
इस बार सरकार की तरफ से मिलने वाला राशन भी केवल एक बार मिला है. सामाजिक संस्था को सरकार की तरफ से राशन बांटने के लिए छूट भी नहीं मिली है. लॉकडाउन के दौरान बिजली के बिल, पानी के बिल अन्य चीजों में छूट मिलनी चाहिए. परेशान लोगों का कहना है कि आत्महत्या के अलावा अब कोई चारा नहीं बचा है. उनकी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है. सरकार भी केवल पूंजीपतियों की बात सुनती है.
बिजली, पानी के बिल, स्कूल फीस माफ की जाए
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान लोगों का दर्द छलक उठा. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में सरकार को गरीब मजदूरों के बिजली, पानी के बिल ही माफ कर देने चाहिए. साथ ही बच्चों की स्कूल की फीस भी माफ होनी चाहिए जिससे लोग अपना जीवन यापन कर सकें व कर्ज में न दबें. काम चौपट होने से गरीब कर्ज तले दबता जा रहा है. ऐसे में कब तक जी सकेगा.
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प्रशासन की तरफ से भी नहीं है कोई व्यवस्था
बीते साल कोरोना की पहली लहर में जिला प्रशासन की तरफ से कंट्रोल रूम शुरू किया गया था. जरूरतमंद हजारों लाखों लोगों को राशन किट में प्रतिदिन भोजन के पैकेट उपलब्ध कराए जा रहे थे. इस काम में सैकड़ों सामाजिक संस्थाओं के साथ अन्य लोग भी आगे आए थे, लेकिन इस बार प्रशासन की तरफ से कोई इंतजाम नहीं किए गए. प्रशासन ने सामाजिक संस्थाओं को राशन के भोजन बांटने की अनुमति भी नहीं दी है. इसके चलते लोग घरों में बंद हैं. कुछ मदद करना चाहते हैं लेकिन पुलिस व प्रशासन की सख्ती के चलते घर से ही नहीं निकल पा रहे हैं.
आने वाले समय में और बिगड़ेंगे हालात
ऐसे ही हालात रहे तो कुछ दिनों में स्थिति बदतर हो जाएगी. इस दौरान डिप्रेशन, सुसाइड की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी होगी. विशेषज्ञों की मानें तो लोग परेशान हैं. दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. लोग चोरी, लूट आदि क्राइम करने को मजबूर हो जाएंगे. हालात ये हैं कि कोरोना के चलते लोगों को मजबूरी में अपना काम बदलना पड़ रहा है. फैक्ट्रियों और मिलों में मजदूरी करने वाले लोग कामकाज बंद होने के बाद अब सब्जी के ठेले लगाकर गुजारा कर रहे हैं.