अलवर.कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में इंद्रदेव के घमंड को चूर करने के लिए ब्रज के लोगों को इंद्र भगवान के कोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत चुंगी पर उठाया था. इस पर लोगों ने भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाया था.
बता दें, अंकुर में बनने वाला ज्यादातर सामान घर का होता है. इसमें ज्यादातर चीजें मौसम के हिसाब से बदलाव और सर्दियों के मौसम से जुड़ी हुई होती हैं. उसके बाद से लगातार द्वापर युग से अन्नकूट का आयोजन किया जा रहा है. इसकी तैयारी दिवाली की रात से शुरू हो जाती है. बड़ी संख्या में लोग मिलकर मंदिरों में अन्नकूट बनाते हैं. वहीं, अगले दिन भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरित करते हैं. इसमें बाजरा, चावल की कड़ी सहित विभिन्न सामग्रियों का भगवान को भोग लगता है. इस आयोजन को साइंस की नजर से भी देखा जाता है.