अजमेर.कोरोना काल में स्कूलों को खोलने का निर्णय राज्य सरकार के पाले में है. राज्य सरकार ने प्रदेश में महामारी को देखते हुए 31 अक्टूबर तक स्कूल बंद रखने का निर्णय लिया है. इसके बाद भी स्कूल खोले जाएंगे या नहीं इसका निर्णय सरकार को करना है फिलहाल स्कूल खोले जाने को लेकर किसी प्रकार की गाइडलाइन सरकार की ओर से जारी नही हुई है. हालांकि स्कूल खुलने की उम्मीद को देखते हुए कुछ बड़ी स्कूलों ने अपनी तैयारी कर ली है. वहीं, दूसरी ओर अभिभावक अभी भी महामारी को देखते हुए अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं है.
राजस्थान में 1 नवंबर से खुलेंगे स्कूल कोरोना महामारी थम नहीं रही है. हालांकि अनलॉक के बाद से व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो चुकी है और कुछ रफ्तार भी पकड़ चुकी है. जन जीवन पटरी पर धीरे-धीरे आ गया है. मगर स्कूल अभी तक बंद है. कई स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था की है. जिससे घर बैठे बच्चें पढ़ाई से जुड़े रहे मगर स्कूल में मिलने वाली शिक्षा और ऑनलाइन पढ़ाई में काफी फर्क है. स्कूल खोलेने का निर्णय केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों पर डाल दिया है. हालांकि राज्य सरकार ने 31 अक्टूबर तक स्कूल बंद रखने के आदेश पहले ही दे रखे है.
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वहीं, इसके बाद भी महामारी को देखते हुए स्कूल खुलेंगे इसको लेकर भी संशय बरकरार है. स्कूल खोले जाने की उम्मीद से बड़े निजी स्कूलों ने अपने तैयारी कर ली है. स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना, सेनेटाइजर की व्यवस्था स्कूल प्रबंधन ने की है. बावजूद इसके स्कूल प्रबंधन का मानना है कि स्कूल में कोरोना गाइडलाइन की पालना करवा दी जाएगी, लेकिन स्कूल के बाहर किस प्रकार से गाइडलाइन की पालना होगी. ज्यादातर बच्चे स्कूल वैन या स्कूल बसों से आते है. इन संसाधनों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना किस प्रकार होगी. ऐसे में संक्रमण को नहीं रोका जा सकता है.
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न्यू मॉडर्न स्कूल के निदेशक कैलाश चंद शर्मा ने बताया कि राजस्थान में करीब 80 प्रतिशत स्कूल छोटे भूखंडों पर संचालित हो रहे हैं. इन स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवा पाना काफी मुश्किल है. क्रमवार बच्चों को स्कूल बुलाना भी उचित नही रहेगा. ज्यादातर बच्चों के माता-पिता कामकाजी हैं. ऐसे में बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने की जिम्मेदारी उठा पाना उनके लिए मुश्किल होगा. शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार को स्कूल खोले जाने को लेकर मंथन करना चाहिए और स्कूल और अभिभावकों की परेशानियों को इंगित कर विद्यार्थियों के हित में गाइडलाइन जारी करनी चाहिए.
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इधर अभिभावकों कि अपनी परेशानियां हैं अभिभावकों का कहना है कि कोरोना महामारी थम नहीं रही है. ऐसे में यदि स्कूल खोले जाते हैं तो बच्चों में संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है. अभिभावक सीता सिसोदिया ने बताया कि उनके बच्चे दोनों छोटे हैं मास्क लगाना सोशल डिस्टेंसिंग में रहना बार-बार हाथ धोना यह सभी जरूरी बातों का ध्यान वह नहीं रख पाएंगे. स्कूल में बच्चे आपस में साथ बैठेंगे और साथ खेलेंगे. बच्चों को रोज स्कूल लाना ले जाना भी अभिभावकों के लिए मुश्किल है. ऐसे में कोरोना वायरस को देखते हुए फिलहाल स्कूल में बच्चों को भेजना ठीक नहीं है.
एक अन्य अभिभावक नीरू शर्मा ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं एक कक्षा 10वीं और दूसरा कक्षा चौथी में अध्ययनरत है. उन्होंने बताया कि दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे को मास्क लगाने सोशल डिस्टेंसिंग रखने और हाथ धोने के बारे में समझाया जा सकता है और वह उसकी पालना भी कर सकता है, लेकिन चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे से कोरोना गाइड लाइन की पालना करने उम्मीद नही लगाई जा सकती, यही वजह है कि जब तक कोरोना वायरस की कोई दवा या वैक्सिंग नहीं आ जाती है तब तक बच्चों को स्कूल भेजना काफी रिस्की है.
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बड़े स्कूलों ने तैयारी कर ली है लेकिन छोटे भूखंडों में बने स्कूल के प्रबंधन अब भी हाथ पर हाथ धरे बैठे है. इधर अभिभावकों का अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर डर भी जायज है. ऐसे में 10वीं और 12वीं बोर्ड स्टैंडर्ड के विद्यार्थियों को क्रमवार स्कूलों में अध्यन के लिए स्कूले खोली जा सकती है. बशर्ते की स्कूलों में संक्रमण रोकने के पुख्ता इंतजाम हो.