अजमेर.आजादी के बाद से ही अजमेर के रेवेन्यू विभाग और प्रशासन की घोर लापरवाही की वजह से ऐतिहासिक महत्व रखने वाला पाल बिचला तालाब अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है. इसी तरह शहर के आम का तलाब का अस्तित्व भी भूमाफिया खत्म करने में जुटे हुए है. अपना अस्तित्व खो रहे दोनों तालाबों को बचाने में प्रशासन कोई रुचि नहीं ले रहा है.
प्रशासन की अनदेखी से तालाब का हाल बेहाल रियासत काल में अजमेर में फॉयसागर झील, आनासागर झील, पाल बिचला, आम का तालाब, मलुसर और डिग्गी तालाब पेयजल के बड़े स्त्रोत थे. सदियों से लोग इन जलस्रोतों से अपनी प्यास बुझाया करते थे. वहीं आज के समय में आलम यह है कि इनमें से किसी भी जलस्त्रोत का जल पीने योग्य तक नहीं है.
जैसे-जैसे वक्त बदला, वैसे-वैसे इंसान की जरुरते भी बदली. अब लोगों ने अपनी प्यास बुझाने के लिए घरों में नल और ट्यूबवेल लगवा लिए है. वहीं अब अजमेर के लिए बीसलपुर परियोजना लाइफ लाइन बन गई है. ऐसे में झील और तालाब की परवाह अब किसी को भी नहीं है. जबकि इन्ही जलस्रोतों की वजह से अजमेर का भूमिगत जल का स्तर बना रहता है, लेकिन यह उस वक्त याद आता है, जब बीसलपुर पाइप लाइन धोखा दे जाती है.
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खैर इन प्रमुख प्राचीन जलस्रोतों में आज हम पाल बिचला और आम का तालाब की बात करेंगे. वो समय दूर नहीं है, जब यह शहर इन दोनों तालाबों को पूरी तरह से निगल चुका होगा. फिलहाल दोनों तालाब का कुछ हिस्सा अभी शेष बचा है. आजादी के बाद से ही शासन और प्रशासन की इन दोनों तालाबों को लेकर लापरवाही और बेपरवाही देखने से लगता है कि कुछ वर्षों बाद तालाब की जगह इनका नाम भी नहीं बचेगा.
तालाब सिकुड़कर शहर की गंदगी के लिए बना गड्ढा इतिहासकार ओम प्रकाश दुबे ने बताया कि पाल बिचला तालाब का निर्माण अजमेर के संस्थापक राजा अर्णोराज के पुत्र विग्रहराज जिन्हें बीसलदेव के नाम से भी जाना जाता था, उन्होंने करवाया था. तलाब के बीच छोटा सा महल और शिव मंदिर भी था. दुबे बताते है कि जहांगीर ने तालाब के पाल की मरम्मत भी करवाई थी. आजादी के बाद पाल बिचला तालाब को सरकारी लापरवाही का ऐसा ग्रहण लगा कि इसका संरक्षण होने की जमीन को लोगों ने जैसे चाहा वैसे कब्जा जमाया. विशाल तालाब आज सिकुड़कर शहर की गंदगी के लिए गड्ढा बनकर रह गया हैं.
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आजादी के बाद रेवेन्यू रिकॉर्ड में से पाल बिचला तालाब ही गायब कर दिया गया है. अतीत की सुंदरता शासन और प्रशासन की घोर लापरवाही से वर्तमान की गंदगी बन गई है. भू माफियाओं ने तालाब में मिट्टी भरकर इसकी जमीन को बेचते जा रहे है. तालाब की जमीन पर रिहायशी कॉलोनियां बस गई है. यह सिलसिला थमा नहीं बल्कि तेजी से तालाब के अस्तित्व को निगलता जा रहा है.
एक्सपर्ट व्यू के तौर पर वकील अरविंद मीणा ने बताया कि तालाब, प्राकृतिक वर्षा जल मार्ग नाले, नदी में पानी भरा रहने पर उसका अधिपत्य सरकार का होता है. यदि सूखा हो तो काश्तकार उसमें काश्त कर सकते है. लेकिन नदी, तालाब और प्राकृतिक बरसाती नालों की जमीन को खरीदा या बेचा नहीं जा सकता.
इतिहास की सुंदरता बना कचरे का अड्डा मीणा ने बताया कि इन दोनों तालाबों की जमीन पर घर बनाने वालों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना करते हुए उन्हें रोकने की बजाय उन्हें सभी प्रकार सरकारी सुविधाएं दी जा रही है. इस कारण दोनों बड़े तलाबों का अस्तित्व भूमाफियाओं और प्रशासन की मिलीभगत से खत्म होता जा रहा है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों को तालाब के अस्तित्व को बचाने से कोई मतलब नहीं है, उन्हें वोट से मतलब है. यही वजह है कि अजमेर के प्रशासन को पाल बिचला और आम का तालाब की बर्बादी दिखाई नहीं देती.
सत्तासीन नेताओ की मिजाजपुर्सी करता आया प्रशासनिक तंत्र भी इन तालाबों के पानी की तरह मेला हो गया है. स्थानीय लोग चाहते है कि तालाब के अस्तित्व को बचाकर उन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जाए. लेकिन भूमाफियाओं के आगे पंगु हुए प्रशासन को हिम्मत दिखानी होगी.
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गौरतलब है कि वर्षों से तिल तिल खत्म हो रहे पाल बिचला तालाब और आम का तालाब को बचाने का मुद्दा कभी किसी चुनाव मैदान में आज तक सुनाई नहीं दिया. दरअसल सस्ते दामों पर तालाब की जमीन मिलने से लोग खुश और बिन मोल की जमीन का मोल मिलने से भूमाफिया खुश. ऐसे में नेता वोट मिलने से खुश और सबकी खुशी में प्रशासन भी खुश तो फिर खत्म हो रहे दोनों तालाबो के अस्तित्व की परवाह कौन करें.