विदिशा।बेतवा और बैस नदी के किनारे बसे विदिशा का इतिहास सदियों पुराना है. विदिशा का संबंध न सिर्फ रामायण से है बल्कि महाकवि कालिदास ने भी अपने खंडकाव्य मेघदूत में इसका जिक्र किया है. इसी ऐतिहासिक शहर का एक हिस्सा है उदयगिरि. उदयगिरि पर्वत पर 20 गुफाएं बनी हुई हैं. गुफाओं की दीवारों पर की गई नक्काशी को देखकर लगता है कि इनमें से ज्यादातर गुफाओं को चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में बनाया गया था.
उदयगिरि से फैलता है उजियारा, यहां मौजूद गुफाओं में छिपा है इतिहास - विदिशा
बेतवा और बैस नदी के किनारे बसे विदिशा का इतिहास सदियों पुराना है. विदिशा का संबंध न सिर्फ रामायण से है बल्कि महाकवि कालिदास ने भी अपने खंडकाव्य मेघदूत में इसका जिक्र किया है. इसी ऐतिहासिक शहर का एक हिस्सा है उदयगिरि. उदयगिरि पर्वत पर 20 गुफाएं बनी हुई हैं.
उदयगिरि का मतलब होता है वह पर्वत जहां से सूरज उगता हो, इस पहाड़ पर गिरती सूरज की रोशनी इतिहास की उन निशानियों पर रोशनी डालती है, जो हमें अपने वजूद से वाकिफ कराते हैं. बलुआ पत्थर से बनी इन गुफाओं में मौजूद प्रतिमाएं मूर्तिकला का बेहतरीन नमूना हैं. उदयगिरि की मूर्तियों में जैन और हिंदु धर्म की झलक साफ दिखती है. भगवान बुद्ध की सीखों और हिंदु सभ्यता की प्रचारक हैं उदयगिरि की ये गुफाएं.
'सूर्योदय पर्वत' के नाम से मशहूर उदयगिरि अपनी बेहतरीन मूर्तिकला के लिए जाना जाता है. यहां गुफा नं. 5 में बनी भगवान विष्णु की प्रतिमा मूर्तिकला का बेजोड़ नमूना है. भगवान विष्णु के वराह अवतार (सुअर जैसे मुंह वाले) की यह प्रतिमा, मूर्तिकला का एक अद्भुत उदाहरण है. इन गुफाओं में विष्णु के अवतारों की मूर्तियों के साथ ही शिव की भी एक विशेष प्रतिमा है जो देखते ही बनती है. वहीं गौतम बुद्ध की सीखों को अपने अंदर समेटे हुए सांची के स्तूपों की छाप भी उदयगिरि की इन गुफाओं में नजर आती है.