उज्जैन। शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन उज्जैन स्थित मां चामुंडा मंदिर में 56 भोग लगाकर माता का विशेष शृंगार किया गया. इस मंदिर में विक्रमादित्य काल से ही मां की विशेष पूजा होती आ रही है. यहां अनादि काल से मां छत्रेश्वरी चामुंडा दो रूपों में विराजमान हैं. छत्रेश्वरी चामुंडा माता मंदिर मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध धार्मिक स्थाल है. ये मंदिर शहर के मध्य मां चामुंडा माता चौराहे पर स्थित है, जो नए और पुराने शहर को आपस में जोड़ता है. हर साल यहां नवरात्र की पंचमी को 56 भोग लगाया जाता है.
मां चामुंडा को लगाया गया 56 भोग इस मंदिर में माता पूर्व दिशा की ओर मुख करके विराजित हैं. मंदिर का निर्माण 1971 में हुआ था. शरदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर दोपहर 12:00 बजे माता की विधि-विधान से पूजा की जाती है. वहीं चैत्र नवरात्रि और अंग्रेजी नववर्ष की पहली तारीख को भी माता के मंदिर में छप्पन भोग लगाया जाता है और फूल-फल से आकर्षण सज्जा की जाती है.
छत्रेश्वरी चामुंडा माता मंदिर में परिक्रमा पथ पर नवदुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हैं. यहां हनुमान महाभैरव और शिव का भी मंदिर है. भक्तों का कल्याण करने वाली चामुंडा माता को मंगलकरणी भी कहा गया है, इसलिए माता के दर्शन पूजन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि, लगातार 12 मंगलवार को माता के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
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पुजारी सुनील चौबे ने बताया कि, उनका परिवार यहां पिछले 45 सालों से पूजा करता आ रहा है. अश्विन माह की पंचमी तिथि को प्रत्येक साल मां चामुंडा को छप्पन भोग लगाया जाता है. यहां मंदिर स्वयंभू है. राजा विक्रमादित्य के समय से जिन मंदिरों में पूजा होती आई है, उसमें से एक ये भी है. मंदिर समिति के प्रबंधक बताते हैं कि, हर साल यहां नवरात्र में 700 लोगों को निःशुल्क भोजन कराया जाता है और पूरे मंदिर की अद्भुत सज्जा भी की जाती है.