टीकमगढ़।कोरोना काल के कारण प्रभावित हुए मजदूरों को आत्मनिर्मभर बनाने के लिए सरकार योजनाएं चला रही है. बुंदेलखंड क्षेत्र में बाहरी राज्यों और महानगरों से वापस आए मजदूरों को कृषि विज्ञान केंद्र में तीन दिवसीय मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. मजदूरों का पलायान रोकने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र की यह पहल काफी कारगार साबित हो रही हैं. बता दें कि ये पहल भारत सरकार की गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई है. यह प्रशिक्षण टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बागाज माता के मंदिर के पास खेतों में दिया जा रहा है.
कोरोना काल का असर देश-प्रदेश में हर वर्ग के लोगों पर पड़ा है. कई लोगों के रोजगार छिन गए, व्यापारियों के व्यापार ठप हो गए. बाहरी राज्यों और महानगरों में काम कर रहे मजदूर की भी रोजी रोटी छिन गई. जिसके चलते सरकार मजदूरों की जिंदगी को फिर पटरी पर लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में भारत सरकार ने गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की गई थी, ताकि बाहरी राज्यों में जाकर काम करने वाले मजूदरों को अपने गांव में ही रोजगार मिल सके.
कैसे होता है मशरूम का उत्पादन
मशरूम की खेती करने के लिए 10 किलों भूसे को करीब 100 लीटर पानी में भिंगोकर रातभर रखा जाता है. उसके बाद भूसे को फार्मलीन एसिड में भिगोंकर 6 घंटे के लिए रख दें. फिर भूसे को सुखाया जाता है. भूसा सूख जाने के बाद उसमें अंकुरित मशरूम के बीजों को मिलाकर पॉलीथिन में भर रस्सियों के सहारे लटका दिया जाता है. जिसके करीब बीस दिन बाद पॉलीथिन को निकाला जाता है. वहीं 40 दिन होने तक यह फसल तैयार हो जाती है. फसल तैयार होने के बाद इसे करीब दो सौ रूपए प्रतिकिलों के हिसाब से बेचा जा सकता है.
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कम लागत-ज्यादा फायदा
बता दें कि, मशरूम की खेती करने के लिए न तो ज्यादा लागत लगती है, न ही जमीन की जरूरत होती है. मशरूम की उपज के लिए सिर्फ अनुपयोगी भूसा, मशरूम के बीज और कुछ कैमिकल फॉर्मेलिन, वासिन की आवश्यकता होती है. इससे केवल 200 रुपए की लागत से हजारों रुपए की कमाई की जा सकती है.
40 दिनों में हो जाती है तैयार
खास बात यह है कि, इसमें ज्यादा वक्त भी नहीं लगता है. मात्र 40 दिनों में मशरूम की फसल तैयार हो जाती है. किसी बड़े शहर में काम करने गए मजदूरों को भी एक महीने में इतना वेतन मिलता है. वहीं यह फसल 40 दिनों में तैयार हो जाती है. यह मजदूरों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.
200 किसान ले रहे हैं ट्रेनिंग
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि, मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मशरूम उत्पादन की तीन दिनों से ट्रेनिग दी जा रही है. जिसमें मजदूर और गरीब तबके के लोगों को परिवार पालने के लिए जिले से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है. फिलहाल करीब 200 लोगों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी जा रही है.
मशरूम की कई प्रजाति होती है. जिसमें एनर्जी और इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता होती है. इसी के चलते इसे काफी पौष्टिक माना जाता है. मशरूम की खेती की तरफ अगर मजदूरों की रुख मुड़ गया, तो मजदूरों को शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. वह घर पर ही रहकर अपने शहरों में मिलने वाली रकम से ज्यादा कमाई कर सकते हैं.