टीकमगढ़।शिवधाम कुंडेश्वर के पास रानीमहल में दसवीं शताब्दी की मूर्तियां हैं जो कि अपनी प्राचीनता को खुद ही दर्शाती हैं. इन ऐतिहासिक कला कृतियों को देखकर लगता है कि एक समय में यह भव्य सुंदरता का प्रतीक रही होंगी. लेकिन आज पुरात्तव विभाग ने इन्हें एक कमरे में बंद कर दिया है, जहां यह कलाकृतियां अपनी पहचान खोती जा रही हैं.
रानीमहल में कैद 10वीं शताब्दी की मूर्तियां 10वीं शताब्दी की 150 मूर्तियां
प्राचीन मूर्तियों को पत्थरों पर करीने से तराशकर बनाया गया है, जिनमें भगवान विष्णु, गणेश, भोलेनाथ, बमनावतार, क्षणिकाये, शनिदेव, नवरत्न, सहित तमाम प्रकार की 150 कलाकृतियां मौजूद हैं. लेकिन इन पुरानी धरोहरों को प्रशासन और अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है.
दुर्दशा का शिकार हो रही प्राचीन मूर्तियां
पुरातत्व विभाग के द्वारा दसवीं शताब्दी की मूर्तियों का रख-रखाव का ध्यान नहीं दिए जाने के कारण यह दुर्दशा का शिकार हो गई हैं. जहां शिवधाम कुंडेश्वर में बुंदेलखंड सहित कई राज्यों के लोग हर साल यहां पहुंचते हैं लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है कि पास के ही रानी महल में 10वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक की कलाकृतियां मौजूद हैं.
प्रचीन कलाकृतियों को संरक्षित करने की अपील
रानी महल के जिन कमरों में इन प्राचीन मूर्तियों को कैद कर रखा गया है, उनकी भी छत गिरने लगी है. कमरे में मूर्तियां धूल खा रही हैं. वैसे तो इनकी देखरेख के लिए एक चौकीदार रखा गया है, लेकिन वह भी केवल नाम के लिए है. क्षेत्र के जो लोग इन मूर्तियों की जानकारी रखते हैं, उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि प्रचीन कलाकृतियों को लोगों से दूर ना रखा जाए, इन्हें सुरक्षित स्थान पर संरक्षित कर लोगों से रूबरू कराया जाए.
70 साल पहले मिली थी मूर्तियां
बताया जाता है कि रानी महल में बंद दसवीं शताब्दी की कलाकृतियों को करीब 70 साल पहले टीकमगढ़ जिले के गांव-गांव से इकट्ठा किया था. जिन्हें पापत संग्रहालय में लोगों को देखने के लिए रखवा दिया गया था. लेकिन संग्रहालय की बिल्डिंग खराब होने के चलते इन मूर्तियों को पुरात्व विभाग ने अपने अधीन कर लिया. जिसके बाद इन्हें रानीमहल के एक कमरे में कैद कर दिया गया. वहीं जब इस बारे में तहसीलदार से पूछा गया तो उनका कहना था कि मूर्तियों के संरक्षण और बाहर लाने के लिए पुरात्तव विभाग को पत्र लिखा जाएगा.