शिवपुरी। जिला मुख्यालय से लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित सुरवाया गढ़ी पर्यटकों का मुख्य केंद्र बना हुआ है. सुरवाया एक प्राचीन स्थल है जिस का प्राचीन नाम सरस्वती पत्तन और शंख मठिका में मिलता है, जबकि रन्नौद नामक स्थल से प्राप्त 10वीं और 11वीं शताब्दी के एक अभिलेख में इस स्थल के लिए शंख मठिका शब्द का प्रयोग किया गया है.
आज भी आकर्षण का केंद्र है सुरवाया गढ़ी, 10वीं शताब्दी के अभिलेखों में मिलता है उल्लेख
जिला मुख्यालय से लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित सुरवाया गढ़ी पर्यटकों का मुख्य केंद्र बना हुआ है. इस गढ़ी में कुल 3 मंदिर हैं, जोकि 10 वीं शताब्दी की कच्छप घात शैली की उत्कृष्ट कला कृति है. इन मंदिरों के प्रवेश द्वार पर पुष्प अलंकरण है.
रन्नौद से प्राप्त अभिलेख के अनुसार, शंख मठिकाधिपति, शंखमठिका का स्वामी कदम्ब, गुहावासी, शैव, पंथ, मत्तमयूर के मार्ग प्रदर्शक एवं प्रथम आचार्य थे. इन्होंने ही मत्तमयूर संप्रदाय से संबंधित गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत भी की थी. इस पंथ से संबंधित भिक्षुओं के लिए 11 वीं और 12 वीं शताब्दी में इस मठ का निर्माण किया गया था. सुरवाया में एक मध्यकालीन दुर्ग है. जिसकी संरचना गढ़ीनुमा होने के कारण स्थानीय रूप से इसे गढ़ी के नाम से जाना जाता है. गढ़ी में प्रवेश के लिए टेढ़े तिरछे रास्तों से होते हुए तीन प्रवेश द्वार हैं, जिनके मेहराब मुगलकालीन हैं. ये गढ़ी दीवार तथा खाई से घिरी हुई है. जिसके अंदर तीन मंदिर तथा एक मठ है.
इस गढ़ी में कुल 3 मंदिर हैं, जोकि 10 वीं शताब्दी की कच्छप घात शैली की उत्कृष्ट कला कृति है. इन मंदिरों के प्रवेश द्वार पर पुष्प अलंकरण है. किसी देवता की प्रतिमा ज्यादातर गणेश की प्रतिमा प्रवेश द्वार के ऊपरी सिरदल के मध्य में बनी है. तीनों मंदिरों के शिखर वर्तमान में टूट चुके हैं. मंदिर क्रमांक 3 के सामने एक आयताकार बावड़ी है, जोकि गड़े हुए पत्थरों से बनी है. यहां पर संरक्षण कार्य के दौरान मलबे की सफाई में दबे हुए जो भी मंदिर के अलंकृत स्तंभ द्वार शाखा सिरदल छत के पत्थर को संग्रहित करके यहीं पर एक मुक्त आकाश संग्रहालय का निर्माण किया था.