शिवपुरी।जिले की करैरा विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है. यह प्रदेश की उन गिनी चुनी विधानसभाओं में शामिल है, जहां जनता अपना चुना हुआ प्रतिनिधि हर चुनाव में बदलती है. कहा जाए तो मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक-23 में 1985 के चुनाव के बाद से अब तक कभी सिटिंग विधायक को लगातार दूसरी बार एमएलए बनने का मौका नहीं मिला है. साथ ही यह उन विधानसभा क्षेत्रों में भी शामिल है, जहां 2018 का चुनाव जीतने के बाद सरकार बनाने वाले कांग्रेस के विधायकों में से 22 विधायकों ने इस्तीफा दे कर बीजेपी ज्वाइन की थी. एक बार फिर चुनाव आ चुके हैं और बीजेपी कांग्रेस इस सीट पर अपने प्रत्याशी को लेकर मंथन में जुटी है.
करैरा विधानसभा क्षेत्र की खासियत:इस क्षेत्र की कई खासियत है, लेकिन सबसे रोचक है इसका इतिहास. करैरा क्षेत्र पुरातत्व संपदाओं को संजोए हुए यहां किला कभी झांसी की रानी के आधीन था, यह दुर्ग इस क्षेत्र के पर्यटन का आकर्षण है. वहीं ग्रामीण अंचल में आय के साधन के लिए कृषि पर ही निर्भर नहीं है. यहां के लोग खेती के साथ-साथ पशुपालन को भी व्यापार के रूप में करते हैं, जिससे अच्छी कमाई भी होती है. साथ ही इस क्षेत्र में भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल का ट्रेनिंग सेंटर भी स्थापित है.
करैरा विधानसभा क्षेत्र के मतदाता:करैरा विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 23 के मतदाताओं की अगर बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या (2.8.2023 के अनुसार) 2 लाख 54 हजार 283 है. इनमें पुरुष मतदाता 1,36,144 हैं, जबकि महिला मातदाओं की संख्या 1,18,138 है. वहीं क्षेत्र में 3 थर्ड जेंडर मतदाता भी शामिल हैं.
करैरा विधानसभा क्षेत्र का पॉलिटिकल सिनेरियो:करैरा विधानसभा (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) पर इस समय सभी की निगाहें टिकी हुई है. माना जा रहा है कि जल्द ही भारतीय जनता अपना प्रत्याशी घोषित करेगी क्योंकि बीजेपी के दूसरी लिस्ट बनकर तैयार है और पार्टी उसे कभी सार्वजनिक किया जा सकता है. इस सीट का महत्व इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि इस सीट से कभी राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी चुनाव लड़ कर विधायक बनी थी. उन्होंने 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ से चुनाव लड़ा था और जीत भी था, ऐसे में यह सिंधिया रियासत के वर्चस्व वाली सीट भी कही जाती है. 2018 में यहां से सिंधिया के समर्थक जसवंत जाटव चुनाव लड़े और जीते भी, कांग्रेस की प्रदेश में सरकार बनाने के सवा साल बाद अचानक सिंधिया के साथ तत्कालीन विधायक अपना पद त्याग कर बीजेपी में शामिल हो गये थे.
इसके बाद जब 2020 में उपचुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी ने बतौर अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा, वहीं बसपा से दल बदलकर कांग्रेस के टिकट पर प्रत्याशी प्रागीलाल जाटव लड़े लेकिन यहाँ सिंधिया का जादू नहीं चल सका और विधायक का पद दोबारा प्रागीलाल जाटव के नाम से कांग्रेस के खाते में चला गया. बीते तीन सालों में विधायक जनता के लिए कुछ ख़ास विकास क्षेत्र में नहीं कर सके, लेकिन सत्ता पर लगे कांग्रेस विधायकों से पक्षपात के आरोपों को देखते हुए दोबारा पार्टी भरोसा कर सकती है. वहीं बीजेपी से पूर्व विधायक जसवंत जाटव और पूर्व विधायक रमेश खटीक पर मथन जारी है. सुनने में आया है कि दोनों में से एक नाम पर बीजेपी ने मोहर लगा दी है, जिसका खुलासा पार्टी प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट में होने की संभावना है.