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गरेमा बेचने वाले इस बुजुर्ग पर भी कोरोना का कहर, धंधा हुआ चौपट - शहडोल में कोरोना

इस कोरोना काल का असर बड़े से लेकर छोटे व्यापारी हर किसी पर पड़ा है. गरेमा एक ऐसी चीज है जो गांव में जानवर रखने वाले लोग आवश्यक वस्तु के तौर पर खरीदते हैं. क्योंकि ये मवेशियों को बांधने के काम आती है और अति आवश्यक चीज है. लेकिन अब लोग बस बहुत जरूरी होने पर ही खरीद रहे हैं. पिछले 30 से 40 साल से गरेमा बेच रहे भइया लाल पटेल भी परेशान हैं. क्योंकि इस समय उनका धंधा भी डाउन है.

Garema sellers in Shahdol
गरेमा बेचने वालों पर कोरोना कहर

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Published : Jun 29, 2020, 3:08 PM IST

शहडोल। कोरोना काल में लॉकडाउन का असर लोगों के व्यापार पर भी पड़ा है, बड़े व्यापारी से लेकर छोटे व्यापारी हर कोई प्रभावित हुआ है. कुछ ऐसी ही व्यथा भइया लाल पटेल की है. जिनकी उम्र 70 साल है और गांव-गांव पैदल चलकर बस गरेमा (मवेशी बांधने के काम आने वाले) का व्यापार करते हैं. इस कोरोना काल में उन्होंने अपनी व्यथा हमें बताई. क्योंकि उनके व्यापार में भी गहरा असर पड़ा है.

गरेमा बेचने वालों पर कोरोना कहर

भइया लाल पटेल की उम्र 70 साल हो चुकी है, वे पिछले 30 से 40 साल से गरेमा बनाते हैं और फिर उसे आज भी गांव-गांव पैदल ही जाकर बेचते हैं. भइया लाल पटेल बताते हैं कि लॉकडाउन में उनका काम प्रभावित रहा. सब कुछ बंद रहा और अब जब सब कुछ खुला है, तो गरेमा बनाने का काम हम भी शुरू कर चुके हैं, साथ ही गांव-गांव जाकर इसे बेच भी रहे हैं, लेकिन अब पहले जैसी बिक्री नहीं हो रही है.

उन्होंने बताया कि हम गरेमा लेकर पहले की ही तरह बेचने के लिए तो जा रहे हैं, लेकिन लोगों के पास पैसे ही नहीं हैं. पहले 4 घर जाते तो सभी कुछ ना कुछ खरीद लेते, लेकिन अब 4 लोग नहीं लेते और एक दो लोग लेते हैं वो भी जितनी की जरूरत है उतना ही लेते हैं, और यही कहते हैं पैसे नहीं हैं. अब बिक्री बहुत कम होती है.

गरेमा बनाने में लगता है पूरा दिन

गरेमा बनाना इतना आसान नहीं है, भइया लाल पटेल कहते हैं कि 4 गरेमा बनाने में पूरा दिन लग जाता है. शुरू में बोरी खरीदकर उसके अलग अलग धागे निकलना फिर उसे गूंथना, लंबा काम होता है. वहीं एक गरेमा 10 रूपये से शुरू होता है और 20 से 25 रूपए तक के गरेमा हैं. मजबूती के हिसाब से रेट तय किए जाते हैं.

धंधा नहीं चल रहा

भइया लाल पटेल बहुत छोटे व्यापारी हैं, वह कहते हैं कि लोगों के पास पैसे ही नहीं हैं, धंधा कोई भी नहीं चल रहा है, सभी दुकानदार, मवेशी वाले, खरीदते थे तब बिक्री अच्छी होती थी. गांव में इसका अच्छा क्रेज था लेकिन अब सब बंद है.

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