शहडोल।प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के चलते बस सेवाएं पिछले छह महीनों से ठप हैं. अब प्रदेश सरकार ने बसों के संचालन की अनुमति दे दी है, जिसके लिए पूरी क्षमता के साथ कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए बसों का संचालन किया जा सकता है. इसके बाद भी शहडोल जिले में अब तक बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है. जिले के बस मालिक अभी भी अपनी मांगों को लेकर अड़े है. उनका साफ कहना है कि जब तक उनकी बसें खड़ी रहीं, तब तक का अगर टैक्स माफ नहीं किया जाता है तो वे बसों का संचालन नहीं करेंगे.
बसों का संचालन नहीं होने से इनसे जुड़े कर्मचारियों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, इनका हाल बेहाल है. लॉकडाउन और इतने महीनों से बसों के बंद रहने के बाद इनसे जुड़े ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी और भी जो कर्मचारी इनसे जुड़े रहते हैं, सभी लोगों के सामने परेशानी खड़ी हो गई है. जब ईटीवी भारत इनके पास पहुंचा तो सभी ने अपना दर्द बयां किया. उन्हें बस इंतजार है कि किसी कदर बस सेवा फिर से शुरू हो जाए और वह फिर से चार पैसे कमाने लगे. जिससे उनका घर चलने लगे.
अभी भी थमे हैं बसों के पहिए
बस ऑनर एसोसिएशन शहडोल के जिला अध्यक्ष भागवत प्रसाद गौतम कहते हैं कि आरटीओ के साथ अभी कुछ दिन पहले जब उनकी बैठक हुई थी तो उसमें ये कहा गया था कि विगत 30 तारीख तक पिछले 6 महीने का टैक्स माफ कर दिया जाएगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सितंबर के एक तारीख से बसों को चलाने के लिए सभी तैयार थे, लेकिन शासन के उदासीन रवैया के चलते ये टैक्स माफी की जो मांग है, वो पूरी नहीं की जा रही है. भागवत प्रसाद ने कहा कि पिछले छह महीनों का टैक्स हम कैसे भरेंगें, जबकि बसें कोरोना काल में चली ही नहीं हैं. अगर टैक्स संबंधी मांगों को मान लिया जाता है तो बसों का संचालन शुरू कर देंगे. जब तक हमारी मांगे नहीं मानी जाएंगी, तब तक हम बसों का संचालन करने में असमर्थ हैं.
ये भी पढ़े-सिंधिया पर भारी पड़े शेजवलकर, ग्वालियर के ड्रीम प्रोजेक्ट रोप-वे निर्माण का आदेश जारी
बसों से जुड़े कर्मचारी आर्थिक तंगी के शिकार
ईटीवी भारत की टीम जब बसों से जुड़े कर्मचारियों से बात की तो उनका साफ कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है, अब वे आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. आलम ये है कि घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. सरकार ने किसी भी तरीके से उनकी मदद नहीं की है. ऐसे में सभी लोग बेहद परेशान हैं.
नहीं है खाने और घर चलाने की व्यवस्था
बस लेबर यूनियन के संरक्षक ओमकार शर्मा ने कहा कि 21 मार्च से लॉकडाउन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, उसके बाद से ही बसें खड़ी हो गई थीं. ऐसे में बस मालिकों ने अपने कर्मचारियों के लिए जो बन सका वो किया. महीने दो महीने के लिए उन्होंने कर्मचारियों के खाने-पीने की व्यवस्था की, लेकिन लंबे समय तक बसें खड़ी रहने से अब बस मालिक भी कुछ नहीं कर सकते. ऐसे में दो महीने से ऊपर हो गया है, इन कर्मचारियों के पास न खाने की व्यवस्था है और न अपना घर चलाने की.