सतना। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर में भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर स्थित है, जिसे गैवीनाथ नाम से जाना जाता है. नाग पंचमी के इस पावन पर्व पर यहां भक्तों का मेला लगता है. माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं.
महाकाल का दूसरा रूप माना जाता है गैवीनाथ इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा खंडित शिवलिंग के रुप में विराजमान है, जिसे उज्जैन महाकाल के दूसरे शिवलिंग के रूप में माना जाता है. पूरे सावन माह यहां मेले जैसा दृश्य रहता है और नाग पंचमी के दिन भक्तों की भीड़ सुबह से ही बनी रहती है. दूर-दूर से लोग यहां जल चढ़ाने और पूजा-अर्चना करने आते हैं. जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वो बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर पुण्य प्राप्त कर सकता है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चारों धाम से लौटने वाले भक्त गैवीनाथ पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ाया गया तो चारों धाम की यात्रा अधूरी रह जाती है.
क्यों कहते हैं महाकाल को गैवी नाथ
प्राचीन में यहां राजा वीर सिंह राज करते थे, तब बिरसिंहपुर का नाम देवपुर हुआ करता था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन जाते थे. जब राजा वृद्ध हो गए तो उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. राजा ने महाकाल से देवपुर में दर्शन देने की प्रार्थना की. भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही. इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर चूल्हे से रात को शिवलिंग का रूप प्रकट होता है, जिसे यादव की मां मूसल से ठोककर अंदर कर देती हैं. कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा, महाकाल राजा को स्वप्न में आए और कहा मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकालना चाहता हूं, लेकिन मुझे गैवी यादव निकलने नहीं देता.
इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई, जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला. फिर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रखा गया. तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है. इसकी पहचान महाकाल के उपलिंग के रूप में भी होती है.