सागर।रबी सीजन की तिलहन फसल अलसी (Flaxseed Farming) एक ऐसी फसल है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. चाहे दिल से जुड़ी बीमारी हो या फिर हड्डियों से जुड़ी बीमारी या तेज रफ्तार से बढ़ रही कैंसर की कोशिकाएं, इन सब को काबू करने में अलसी काफी कारगर है. शरीर की ऊर्जा बनाए रखने के लिए अलसी बादाम से भी ज्यादा कारगर है. अलसी की खेती में किसान काफी कम रुचि ले रहे हैं. इसका बड़ा कारण अलसी की कटाई, सफाई और गहाई में ज्यादा मजदूरों और ज्यादा समय की आवश्यकता है.
अलसी की नौ उन्नत किस्म हुईं विकसित
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) की देखरेख में सागर क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में पिछले 34 सालों से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. यह मध्य प्रदेश के किसानों सहित देश के किसानों के लिए अलसी की उन्नत किस्मों पर अनुसंधान कर रहे हैं. सागर का अनुसंधान केंद्र अब तक अलसी की 9 उन्नत किस्मों को विकसित कर चुका है.
1987 से चल रही है अलसी की उन्नत किस्मों पर रिसर्च
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सागर कृषि अनुसंधान केंद्र में 1987 से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. अनुसंधान केंद्र ने अभी तक अलसी की 9 प्रजातियां विकसित की हैं, जो कि मध्य प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य प्रदेशों में भी काफी लोकप्रिय हुई हैं. पूरे देश में इन प्रजातियों की काफी मांग है.
सिंचित और असिंचित जमीन के लिए तैयार की गई हैं किस्में
सागर स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक और अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना के प्रभारी डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि रवि सीजन की तिलहनी फसलों की बात करें, तो अलसी का प्रमुख स्थान है. वर्तमान में सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-27, जेएलएस-79 प्रजातियां विकसित की गई हैं. पवारखेड़ा अनुसंधान केंद्र द्वारा सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-41 प्रजाति विकसित की गई हैं. इसके अलावा असिंचित जमीन के लिए भी जेएलएस-66 काफी लोकप्रिय प्रजाति है. इसके अलावा जेएलएस-73 और जेएलएस-95 और जेएलएस-93 प्रजातियां वर्तमान परिवेश में अच्छा उत्पादन दे रही हैं.
यंत्रीकरण और आदानों का प्रयोग कर पा सकते हैं अच्छा उत्पादन
डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि अलसी की खेती में किसान आमतौर पर खराब भूमि और आदानों का कम प्रयोग करते हैं. उचित प्रबंधन के माध्यम से खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्व नियंत्रण का प्रबंधन कर अलसी का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है. उत्पादन की बात करें तो प्रति एकड़ में 6 क्विंटल तक फसल पाई जा सकती है. यंत्रीकरण के अभाव में कटाई सफाई और गहाई में किसानों के लिए श्रमिकों की ज्यादा आवश्यकता पढ़ती है और समय भी ज्यादा लगता है. इन परिस्थितियों को देखते हुए हमने यंत्रीकरण पर भी काम किया है.