राजगढ़। गुरू बिना ज्ञान नहीं मिलता और गुरू बिना उद्धार भी नहीं होता, यही वजह है कि गुरू का स्थान भगवान से भी ऊपर माना जाता है क्योंकि बिना गुरू के भगवान तक पहुंचने का मार्ग भी नहीं मिलता है. ऋषि-मुनि, नर-नारायण सबको गुरू की शरण में जाना ही पड़ता है. राजकीय शासन में भी हर राज्य में राजगुरू नियुक्त किये जाते रहे हैं. राजगढ़ राजघराने के महाराज वीरेंद्र सिंह ने19वीं शताब्दी में पहली बार राजगढ़ पहुंचे जगदानंद का चमत्कार देख उन्हें राजगुरू बनने का ऑफर दिया था और अपने चमत्कार से सबको चकित करने वाले जगदानंद ने आखिर में इसी राज में जिंदा समाधि ले ली थी.
जगदानंद महाराज के पौत्र चंद्रकांत महाराज ने बताया कि जब से उनका राजगढ़ में आगमन हुआ था, तब से उनके चमत्कार देख लोग उनके मुरीद हो गये थे. यहां तक कि खुद राजा भी उन्हें राजगुरू बनने की पेशकश कर उन्हें राजभवन में रहने का ऑफर दिये थे. जिसके लिए उन्होंने शर्त रखी कि बिना कोई काम मिले वो इस राज में नहीं रुकेंगे, तब राजा ने उन्हें जल घड़ी में प्रहरी का काम दिया. पर वे एक दिन भगवान की याद में इस कदर खोये कि अपना काम भूल गये, जिसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने इस्तीफा देकर राजा से सजा देने की मांग की. पर लोगों का दावा था कि वह पहरे पर तैनात थे.