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जगदानंद महाराज के मुरीद हो गये थे राजा वीरेंद्र सिंह, राजगुरू बनने का दिया था ऑफर

राजगढ़ के राजा वीरेंद्र सिंह 19वीं शताब्दी में जगदानंद के चमत्कार के किस्से सुनकर इतना प्रभावित हुए कि उन्हें राजगुरू बनने का ऑफर दे डाला, अंततः वो इस प्रयास में सफल भी हुए और जगदानंद राजगुरू बन गये, इस दौरान उन्होंने जो काम किया, उसे खूब सराहना मिली. उन्होंने अनेकों लोगों को अपना शिष्य बनाया और उन्हें अच्छी राह भी दिखाई.

राजगुरू की समाधि

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Published : Jul 21, 2019, 8:02 PM IST

राजगढ़। गुरू बिना ज्ञान नहीं मिलता और गुरू बिना उद्धार भी नहीं होता, यही वजह है कि गुरू का स्थान भगवान से भी ऊपर माना जाता है क्योंकि बिना गुरू के भगवान तक पहुंचने का मार्ग भी नहीं मिलता है. ऋषि-मुनि, नर-नारायण सबको गुरू की शरण में जाना ही पड़ता है. राजकीय शासन में भी हर राज्य में राजगुरू नियुक्त किये जाते रहे हैं. राजगढ़ राजघराने के महाराज वीरेंद्र सिंह ने19वीं शताब्दी में पहली बार राजगढ़ पहुंचे जगदानंद का चमत्कार देख उन्हें राजगुरू बनने का ऑफर दिया था और अपने चमत्कार से सबको चकित करने वाले जगदानंद ने आखिर में इसी राज में जिंदा समाधि ले ली थी.

जगदानंद महाराज के चमत्कार

जगदानंद महाराज के पौत्र चंद्रकांत महाराज ने बताया कि जब से उनका राजगढ़ में आगमन हुआ था, तब से उनके चमत्कार देख लोग उनके मुरीद हो गये थे. यहां तक कि खुद राजा भी उन्हें राजगुरू बनने की पेशकश कर उन्हें राजभवन में रहने का ऑफर दिये थे. जिसके लिए उन्होंने शर्त रखी कि बिना कोई काम मिले वो इस राज में नहीं रुकेंगे, तब राजा ने उन्हें जल घड़ी में प्रहरी का काम दिया. पर वे एक दिन भगवान की याद में इस कदर खोये कि अपना काम भूल गये, जिसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने इस्तीफा देकर राजा से सजा देने की मांग की. पर लोगों का दावा था कि वह पहरे पर तैनात थे.

इसके बाद राजा ने जगदानंद को भगवान की स्तुति करने की जिम्मेदारी दी. फिर उन्होंने अपना पूरा समय भगवान के आश्रय में गुजार दिया, वहीं एक और घटना का वृतांत बताते हुए उनके पौत्र ने बताया कि एक औघड़ राजगढ़ नगर में आया और उसने लोगों को भयभीत कर दिया. फिर राजा के पास पहुंचकर कहने लगा कि आप मुझे अपना गुरु बनाइए तो राजा ने कहा कि मेरे गुरु तो जगदानंद जी हैं, आप जाकर उनसे ही बात कीजिए, इस पर औघड़ जगदानंद के पास पहुंचा, तब वे तपस्या में लीन थे, जब औघड़ उन्हें अपने साथ ले जाने लगा, तब उनकी आंख खुली तो उन्होंने औघड़ का अंत कर दिया.

जगदानंद महाराज ने जीवित समाधि लेने की घोषणा की, समाधि लेने के बाद उनके शिष्य ने उनसे आग्रह किया कि आप एक बार अपना दर्शन दे दीजिए तो उन्होंने तुरंत समाधि स्थल से बाहर आकर अपने शिष्य की मनोकामना पूरी की और फिर हमेशा के लिए संसार को अलविदा कह दिये, उनकी समाधि पर महाराज वीरेंद्र सिंह ने समाधि स्थल बनवाते हुए एक ताम्रपत्र प्रदान किया और उस स्थान को उनके नाम से दर्ज कर दिया. पूर्व में इस तरह के चमत्कारिक ऋषि-मुनि होते रहे हैं, जिनके किस्से कहानियां आज भी तारीख पर दर्ज है.

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