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जानिए बौद्ध काल की अनोखी कहानी, जब पत्थर में तब्दील हो गए चावल

एक अनोखा चावल मंडला के पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित है, जिसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे, यह चावल अब पत्थरों में तब्दील हो चुका है. जाने इस चावल की पूरी कहानी...

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Published : Sep 26, 2020, 3:43 PM IST

Stone Rice in Mandla
बौद्ध कालीन ढाई हजार साल पुराने चावल

मंडला।देश के सभी पुरातत्व संग्रहालय में कुछ ना कुछ अनोखी चीजों का संग्रहण मिलता है, जो इंसान को कौतुहल में डाल दे. ऐसा ही एक अनोखा चावल मंडला के पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित है. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि ये चावल अब पत्थरों में तब्दील हो चुका है. जिसे जले हुए चावल के नाम से जाना जाता है. जानकारों के अनुसार ये चावल ढाई हजार साल पुराना है और इसका सीधा संबंध बौद्ध कालीन संभ्यता से हैं. ईटीवी भारत ने जब इस संबंध में जानना चाहा तो पता चला कि ये इतिहास के साथ ही पुरातत्व का अनमोल धरोहर है.

बौद्ध कालीन ढाई हजार साल पुराने चावल

ये चावल देखने में बिल्कुल असली चावल जैसे ही है, जो अब पत्थरों में बदल चुका है. ढाई हजार साल पुराने इस चावल के दाने ठीक वैसे ही हैं, जैसे आज के उपयोग में आने वाला जीराशंकर नश्ल का चावल होता है.

कहां मिले थे ये चावल
मंडला जिला पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित ये चावल बिहार के उस स्थान से लाया गया है, जिसका सीधा संबंध महात्मा गौतम बुद्ध से है. मंडला पुरातत्व संग्रहालय के निर्माता और तत्कालीन सांख्यिकी अधिकारी डॉक्टर धर्मेंद्र प्रधान जो बिहार के ही रहने वाले थे, वे अपने गृह निवास गए तो उन्हें पता चला कि पिपरहवा नामक स्थान पर खुदाई चल रही है और यहां खुदाई के दौरान एक चूल्हा और मिट्टी की हांडी मिली है, जिसमें जले हुए चावल मिले हैं.

मंडला में कैसे आए चावल
पुरातत्व और इतिहास से गहरा लगाव रखने वाले डॉक्टर धर्मेंद ने अपनी गांव में चल रही खुदाई में मिले चावल को देख कर एसआईटी की टीम से निवेदन किया, कि उसमें से कुछ चावल वे मंडला जिले के पुरातत्व संग्रहालय में ले जाना चाहते हैं और उनके निवेदन पर उन्हें ये बौद्ध कालीन चावल के दाने मंडला आये, जो इस जिले के साथ ही प्रदेश के लिए गौरव की बात है. पूरे मध्यप्रदेश के किसी भी पुरातत्व संग्रहालय में इतने पुराने चावल, जो पत्थर में बदल चुके हो कहीं भी नहीं हैं.

गौतम बुद्ध से है चावल का संबंध
पिपरहवा बिहार का सीधा संबंध गौतम बुद्ध से है और यहीं से ये चावल प्राप्त हुए, जिसकी आयु लगभग ढाई हजार साल आंकी जा चुकी है. यही वजह है कि पुरातत्व संग्रहालय में इन्हें संरक्षित करके रखा गया है, जिला पुरातत्व अधिकारी हेमन्तिका शुक्ला के अनुसार ये इतिहास के साथ ही पुरातत्व की अनमोल धरोहर हैं जिनकी कोई भी कीमत नहीं आंकी जा सकती, लेकिन ये पत्थर में बदल चुके चावल इस बात के गवाह हैं कि उस समय के मनुष्य भी चावल की पैदावार किया करते थे. साथ ही ढाई हजार साल पहले भी चावल मनुष्यों का मुख्य भोजन था तब के और अब के चावल में किसी तरह का अंतर नहीं आया है.

ऐतिहासिक महत्व
हेमन्तिका शुक्ला के अनुसार इतिहास और पुरातत्व के अध्ययन या फिर इन विषयों पर शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए ये चावल बेशकीमती धरोहर हैं. क्योंकि इनसे यह पता लगाया जा सकता है कि तब की और अब की खेती में क्या अंतर और समानताएं हैं. इसके अलावा यह भी जाना जा सकता है कि आखिर क्या वजह थी जो ये चावल चूल्हे में रखी हांडी में पक कर अधजले रह गए, शायद इसकी वजह अचानक पिपरहवा में हुआ आक्रमण रहा हो या फिर लुटेरों के चलते या प्राकृतिक आपदा की वजह से लोगों को भागना. जिस कारण जो भी चीजें जिस इस्थिति में थीं वे वैसी ही रह गईं और कालांतर में पत्थर में बदल गईं.

चावल पर हो शोध
यह जरूर शोध का विषय है कि किन वजहों से चावल हांडी में अधजले रह गए और जब खुदाई में मिले तो इतिहास की वो धरोहर बन गए. लेकिन मण्डला जिले का शौभाग्य ही कहा जा सकता है जो इतने पुराने चावल जिला पुरातत्व संग्रहालय में मौजूद हैं जिनका सीधा संबंध बौद्ध काल से है, अब जरूरत है तो उन शोधार्थियों की जो पत्थर में बदल चुके चावल की उस जानकारी को सामने लाएं, जो प्राचीन सभ्यता के साथ ही उस समय की खेती-किसानी और मनुष्यों के विकास की कहानी बयां करती हैं.

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