मंडला। जिले में एक ऐसा स्थान है जहां अजगरों की पूरी बस्ती है. यहां एक साथ दर्जनों की संख्या में अजगरों का दीदार किया जा सकता है. इसे मध्य प्रदेश का सर्प लोग भी कहा जाता है (Snake World of MP). लेकिन प्रशासन की तरफ से अजगरों के संरक्षण के लिए अब तक कुछ नहीं किया गया और अब इंसानी दखल के चलते अपने हैबिटेट जोन में ही ये अजगर सुरक्षित नहीं हैं.
अजगर एक ऐसा जीव है जो खुद को बचाए रखने के लिए तकरीबन 6 माह कुछ खाता पीता नहीं है, बस शीत-निष्क्रियता में चला जाता है, लेकिन अब इसके नेचुरल हैबिटेट जोन में ही इंसानी दखल के चलते अनुकूल परिस्थितियां नहीं मिल पा रहीं और इनकी आबादी पर ही खतरा मंडरा रहा है.
अनूठी अजगरों की बस्ती
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर ककैया बीट में एक ऐसा स्थान है, जहां लगभग 218 हेक्टेयर में फैले वन क्षेत्र में अजगरों की पूरी बस्ती है. सैकड़ों की तादाद में रहने वाले ये अजगर ठंड के समय शीत-निष्क्रियता वाले स्थानों में चले जाते हैं और इस मौसम में खाना पीना छोड़ कर बस खुद को बचाने के लिए धूप का सहारा लेते हैं. अजगर दादर नाम के इस स्थान में सतह से भीतर जाते बिलों से बड़ी संख्या में 5 से 22 फुट तक लंबे अजगर बाहर निकल कर धूप सेंकते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं. जानकारों के मुताबिक यह जगह भीतर से खोखली है और दूसरी जगहों के मुकाबले यहां का तापमान ज्यादा होता है. साथ ही आस पास लैंटाना की झाड़ियों और वन क्षेत्र में रहने वाले चूहे, जमीन पर रेंगने वाले छोटे जीव, खरगोश, पक्षी इनके खाने के लिए उपलब्ध हैं, यही वजह है कि यह अजगरों के रहने और सन्तानोत्पत्ति के लिए प्रकृतिक आदर्श स्थान है.
बढ़ रहा इंसानी दखल, सुरक्षा और संरक्षण पर सवाल
तकरीबन एक दशक से यह स्थान लोगों की नजर में आया है और तभी से यहां दूर-दूर से लोग प्राकृतिक रूप से रह रहे अजगरों का दीदार करने आते हैं. उन्हें निराश भी नहीं होना पड़ता, लेकिन शासन-प्रशासन की तरफ से इन अजगरों के साथ ही आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा के लिए कोई भी इंतजाम नहीं किए गए है. ऐसे में अपने को ठंड से बचाने धूप का सहारा लेते अजगरों को बाहर निकल कर धूप सेंकने में परेशानी तो होती ही है और लोगों की भीड़ के चलते बार बार भीतर बिलों में जाना पड़ता है और अजगर खुल कर धूप नहीं ले पाते और अधिक ठंड उनकी आबादी पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है.