झाबुआ। जिला अस्पताल के पीआईसीयू में निमोनिया पीड़ित 4 ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जिनके सीने और पेट पर गर्म सलाखों से दागा गया है. इनमें से 2 बच्चों की हालत गंभीर है उन्हें ऑक्सीजन पर रखा गया है. आदिवासी बहुल जिले झाबुआ का यह पहला मामला नहीं है, हर महीने 20 से 25 ऐसे बच्चे यहां अस्पताल में भर्ती होते हैं, जिनके शरीर पर दागने के निशान होते हैं. आखिरकार माता-पिता इतने निर्दयी कैसे हो जाते हैं जो अपने नवजात के शरीर पर गर्म सलाखों से दाग लगवा लेते हैं. इस मामले को समझने के लिए हमने जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ और PICU प्रभारी डॉक्टर संदीप चोपड़ा से बात की, उन्होंने हर पहलू को बारीकी से समझाया.
दागने की प्रथा जानलेवा:डॉ. संदीप चोपड़ा के मुताबिक हर महीने करीब 150 बच्चे हॉस्पिटल में भर्ती होते हैं, इसमें से 50 से 60 निमोनिया पीड़ित रहते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले निमोनिया पीड़ित अधिकांश बच्चों के शरीर पर दागने के निशान होते हैं. जब बच्चे को निमोनिया होता है तो संक्रमण की वजह से वह तेज-तेज सांस लेने लगता है. आम बोल चाल की भाषा में ग्रामीण इसे हापलिया कहते हैं. ऐसे में अंधविश्वास के चलते गांव के ही किसी तांत्रिक के पास लेकर चले जाते है, जो बच्चे के सीने और पेट पर लोहे की गर्म सलाखों से दाग लगा देता है. दर्द की वजह से बच्चे की सांस धीमी हो जाती है और माता पिता समझते हैं कि दागने से उनका बच्चा स्वस्थ्य हो गया. मेरी सबसे यही अपील है कि निमोनिया होने पर बच्चे को अस्पताल लेकर जाएं और उनका उचित उपचार कराएं.