जबलपुर| प्रशासनिक लापरवाही के चलते तीन बड़े सरकारी अस्पताल शुरु नहीं हो पा रहे हैं. कैंसर अस्पताल की बिल्डिंग अधूरी है, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं हैं और मेडिकल कॉलेज के 100 बेड के अस्पताल का काम अधूरा पड़ा है.
राष्ट्रीय स्तर का कैंसर अस्पताल
130 करोड़ रुपए की लागत से एक कैंसर अस्पताल बनाया जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर के इस अस्पताल में 200 बिस्तर होंगे. इसके साथ ही 40 मरीजों को रखने के लिए ICU वार्ड बनाए जा रहे हैं. इस कैंसर अस्पताल में कैंसर से जुड़े इलाज के लिए 85 करोड़ के उपकरण होंगे. रेडियो थेरेपी की अत्याधुनिक सुविधाएं, कैंसर से जुड़ा हुआ रिसर्च किया जाएगा. गरीब लोगों को मुफ्त में इलाज मुहैया करवाया जाएगा. इस अस्पताल को 2018 में ही बनकर तैयार हो जाना चाहिए था. राज्य सरकार ने अपना हिस्सा आज से चार साल पहले दे दिया था. लेकिन केंद्र सरकार इस में रोड़े अटका रही थी. अब यह पैसा भी मिल गया है इसके बावजूद इस अस्पताल का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है. मेडिकल कॉलेज के डीन नवनीत सक्सेना का कहना है कि अभी 80% काम पूरा हुआ है और अस्पताल को शुरू होते-होते साल बीत जाएगा.
प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक हजार मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज काम करने नहीं तैयार डॉक्टर
जबलपुर में लगभग 100 करोड़ की लागत का एक अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनकर तैयार है. ये अस्पताल बीते 1 साल से अपने खुलने का इंतजार कर रहा है. इसमें भी 300 मरीजों के हिसाब से सुपर स्पेशलिटी इलाज की व्यवस्था की गई है. इसमें हार्ड न्यूरोलॉजी नेफ्रोलॉजी और अलग-अलग विधाओं के सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिए ऑपरेशन थिएटर, पैथोलॉजी लैब और अत्याधुनिक आईसीयू वार्ड बना दिए गए हैं. लेकिन तीन लाख रुपए महीना तनख्वाह ऑफर करने के बाद भी डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में नौकरी करना नहीं चाहते. क्योंकि इसमें नौकरी करने के बाद डॉक्टरों को बाहर प्रैक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा, जो डॉक्टरों को मंजूर नहीं है. इस अस्पताल के मुखिया डॉक्टर वाईआर यादव का कहना है कि एक-दो महीने के अंदर अस्पताल चालू कर दिया जाएगा.
MBBS की सीटें बढ़ाने चाहिए नया अस्पताल
जबलपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटें बढ़ानी हैं. इसलिए बिस्तरों की संख्या बढ़ना जरूरी है. जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बिस्तरों का एक अस्पताल और बनाया जा रहा है. उसका काम भी बड़ी धीमी गति से चल रहा है और जिस तरीके से काम चल रहा है उससे नहीं लगता कि बहुत जल्दी ये सुविधा आम आदमियों को मिल पाएगी.
ये तीनों अस्पताल शुरू हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की इलाज की सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में ही मिलने लगेंगी. लेकिन इन अस्पतालों को तुरंत शुरू करने में सरकार और प्रशासन की कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही है.