जबलपुर।कोरोना काल में हस्तकला से लेकर रेडीमेड कपड़े या फिर फसल के उत्पात से लेकर ब्यूटी पार्लर प्रबंधन तक, सेल्फ डिपेंड रहने वाली महिलाओं के सामने अपने रोजगार को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है. जिसे देखते हुए जबलपुर के गोकलपुर ग्राम में रहने वाली सपना काछी ने आत्मनिर्भर होते इस चुनौती से हार नहीं मानी और आज वो दीनदयाल अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की मदद से नए सिरे से सब्जी की खेती कर रही हैं. जिसकी हर कोई सराहना कर रहा है.
कोरोना काल में आत्मनिर्भर महिलाओं के साथ-साथ वो महिलाएं जो की पूरी तरह से कृषि क्षेत्र पर आश्रित थीं, उनके सामने हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी खेती को संजोकर रखने की एक बड़ी चुनौती थी. इन्हीं में से एक हैं जबलपुर की सपना काछी, जो सेल्फ डिपेंड होते हुए अपने खेतों में सब्जी- भाजी की खेती करती हैं. लॉक डाउन के पहले तक तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसे ही लॉक डाउन लगा सपना की हरी सब्जियां पूरी तरह से बर्बाद हो गईं. सब्जी- भाजी से जहां, उन्हें अच्छा खासा दाम मिल रहा था, वहीं कोरोना के चलते सब्जियों के दाम आसमान से जमीन पर आ गए. आलम ये था कि, सपना के सामने अपनी खेती को बचा कर रखना एक बड़ी चुनौती बन गई थी.
दीनदयाल अंत्योदय योजना से मिली मदद
सपना ने अपने पति के साथ मिलकर लॉक डाउन के पहले खेत में हरी सब्जियां लगाई थी, लेकिन बाजार बंद होने के कारण उसकी सब्जियां नहीं बिक पा रही थीं. सपना को लगा कि, अब उसके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा ? ऐसे समय में दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने सपना को सहारा दिया, जिसने ना सिर्फ नई तरह से खेती करने के तरीके सिखाए, बल्कि उसे वित्तीय मदद भी दी. इस मदद से सपना ने एक बार फिर अपने खेतों को हरा भरा कर दिया. हालांकि अब सपना के खेतों में हरी सब्जियों की जगह अधिक मुनाफे वाली फसल देखने को मिल रही है.
हल्दी, अदरक, पपीता, केला की हुई अच्छी पैदावार
सपना के कार्यों को देख आजीविका विभाग भी आगे आया और वित्तीय मदद दी, साथ ही फसल से संबंधित सलाह भी दी. जिसमें उन्हें बताया गया कि, किन फसलों को लगाए, जिससे उन्हें अधिक फायदा हो. सपना के खेत में अदरक, हल्दी, केला, पुदीना, पपीता, लौकी जैसी फसलों का भरपूर मात्रा में उत्पादन हो रहा है. सपना के कार्यों में उसके पति संतोष ने बराबर का सहयोग किया है. यहीं कारण है कि, आज सपना काछी पूरे जबलपुर में एक प्रेरणा स्वरूप दीदी के नाम से विख्यात हो गई हैं.
सपना के पति ने जाहिर की खुशी
सपना के पति संतोष ने बताया कि, उन्होंने हमेशा से ही सब्जी भाजी का व्यवसाय किया है, जिसके चलते उन्हें अपने खेत में मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी. वहीं कोरोना काल में एक डर बना रहता था कि, इन फसलों के दाम अच्छे मिलेंगे या नहीं ? जिसके बाद उनकी पत्नी मिशन के संपर्क में आईं और मिशन की सलाह से उन्होंने हल्दी, अदरक, केला और अन्य फसलों को लगाया, जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ. पत्नी के इस कार्य से संतोष बेहद खुश है.
कृषि विशेषज्ञों ने की मदद
कृषि विशेषज्ञों ने सपना को सलाह दी कि, वो अपने खेतों में अन्य फसल जैसे अदरक, हल्दी, पपीता, केला लगाना शुरू करें, जिसके बाद उन्होंने यहीं किया, जिसका नतीजा ये रहा कि, सब्जी भाजी से महज 10 से 20 हजार रुपए की कमाई होती थी, वहीं अदरक, पुदीना, केला, पपीता की फसल से अब उनकी आमदनी 50 हजार रुपए हो गई है. कृषि विशेषज्ञ डीपी तिवारी ने बताया कि, जिस तरह से सपना ने मिशन की सलाह मान कर उन्नत खेती की और अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही हैं. इसी तरह से अगर चाहें तो प्रदेश की अन्य महिलाएं भी अपने रोजगार को बढ़ा सकती हैं. उन्होंने कहा कि, खेती में अच्छा खासा लाभ कमाया जा सकता है.
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ग्रामीण आजीविका मिशन से महिलाओं को मिली मदद
ग्रामीण आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक श्वेता महतो ने बताया कि, कोरोनाकाल आत्मनिर्भर महिलाओं के लिए चुनौती भरा रहा. खासतौर पर वे महिलाएं जो की पूरी तरह से सिर्फ अपने रोजमर्रा के कामों पर आश्रित हैं, उनके सामने अपने परिवार को चलाने की बड़ी चुनौती रही. बावजूद इसके मिशन की सहायता के चलते सपना काछी जैसी महिलाओं ने ना सिर्फ अपने परिवार को ऐसे समय में चलाया, बल्कि महिलाओं के लिए एक प्रेरणा साबित हुई हैं.
जबलपुर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से मिली जानकारी के अनुसार
- 2017 से मार्च 2020 तक 4608 समूह का गठन हुआ, कोरोनाकाल में 519 नए समूह बने, जिसके बाद कुल 5127 समूहों का गठन हो चुका है.
- मार्च 2020 तक समूह से जुड़े हुए परिवारों की संख्या 52,255 थी, जिसमें 5,885 नए परिवार जुड़े, जिसके बाद इसकी संख्या बढ़कर 58,140 हो गई है.
- चक्रीय राशि (RF) प्राप्त स्व- सहायता समूह की संख्या मार्च 2020 तक 14,504 थी, कोरोना काल के बाद इसकी संख्या 16,093 हो गई है.
- मार्च 2020 तक स्व- सहायता समूहों को 223.19 लाख रुपए दिए गए थे, वहीं कोरोना काल में भी 26.51 लाख रुपए दिए गए. जिसके बाद अब तक कुल 249.70 लाख रुपए स्व- सहायता समूहों को दिया जा चुका है.
- जिले में कुल 9,913 कार्यकर्ता आजीविका गतिविधि से जुड़े हुए हैं.