जबलपुर। जबलपुर नगर निगम अधिकारियों ने कबाड़ से कमाल के नाम से योजना चलाई थी. इसके तहत शहर में कबाड़ हो चुकी मेट्रो बसों को नई शक्ल सूरत दी गई. लेकिन एक बार सुर्खियां बटोरने के बाद ये बसें अब दोबारा कबाड़ होने के लिए छोड़ दी गई हैं. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने इसमें बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं किया. इसलिए बहुत नुकसान नहीं होगा.
छवि चमकाने की कोशिश :जबलपुर नगर निगम हर दो-तीन साल में मेट्रो बसों की खरीद करता है. मौजूदा समय में जबलपुर में तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा बसें कबाड़ होने के लिए बस स्टैंड पर छोड़ दी गई हैं. इसे देखते हुए एक अधिकारी के दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों ना इन बसों का इस्तेमाल कुछ ऐसा किया जाए कि मुख्यमंत्री की निगाह में उनकी अच्छी छवि बन जाए .इसलिए जबलपुर में स्मार्ट सिटी के कुछ अधिकारियों ने कबाड़ हो रही मेट्रो बसों को नई शक्ल देख कर कबाड़ से कमाल नाम का एक नया सिस्टम शुरू किया.
शुरू में लोगों ने योजना को सराहा :योजना के तहत कबाड़ हो चुकी मेट्रो बसों को नई शक्ल देने के लिए इनमें बर्तन बैंक, पुस्तक बैंक, आवास संचालित करने तैयारी की गई. इन बसों में लाखों रुपए खर्च करके रंगरोगन किया गया. इनके अंदर की सीटों को हटाकर मॉडिफाई किया गया और पुस्तक बैंक बनाने के लिए इन्हें तैयार किया गया. इनके अंदर पंखे लगाए गए. पौधे लगाए गए. पूरी बस को नई शक्ल दी गई. शुरुआत में यह योजना अच्छी लग रही थी. लोगों को लग रहा था कि सचमुच में इन कबाड़ हो चुकी बसों का इस्तेमाल किया जा सकेगा.