World Tribal Day Special: जानिए आदिवासी दिवस पर क्यों पहनाई जाती है टंट्या मामा की प्रतिमा को नई धोती, सदियों से चली आ रही परंपरा - टंट्या मामा इंडियन रॉबिनहुड
Honoring Tantya Mama by wearing New Dhoti:आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस दिन आदिवासी अंचल के लोग क्रांतिसूर्य जननायक टंट्या मामा सहित अपने पूर्वजों की प्रतिमा को नई धोती पहनाकर उनका सम्मान करते हैं. आखिर ऐसा क्यों किया किया जाता है. इस रिपोर्ट में जानिए इसके पीछे की वजह...
टंट्या मामा प्रतिमा को पहनाई जाती है नई धोती
By
Published : Aug 9, 2023, 11:52 AM IST
|
Updated : Aug 9, 2023, 2:07 PM IST
आदिवासी दिवस पर टंट्या मामा प्रतिमा को पहनाई जाती है नई धोती
इंदौर। आदिवासी लोक संस्कृति में अपने पूर्वजों और बुजुर्गों के सम्मान की गरिमामय और समृद्ध परंपरा है. जिसमें अपने पूर्वजों को नए वस्त्र पहना कर (गावता करके) उनका सम्मान किया जाता है. प्रदेश के आदिवासी अंचल में यही परंपरा दशकों से क्रांतिसूर्य जननायक टंट्या मामा के सम्मान में उनकी मूर्ति को धोती पहना कर निभाई जाती है.
सदियों ने निभाई जा रही है परंपरा:दरअसल संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) द्वारा 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस घोषित किया गया था. दुनिया भर के विभिन्न देशों के अलावा इस दिन भारत में भी आदिवासी महापुरुषों के सम्मान के साथ आदिवासी वर्ग के देश में योगदान को याद किए जाने की परंपरा है. हालांकि प्रदेश के आदिवासी अंचल में यह परंपरा गवता के रूप में सदियों से निभाई जा रही है. इस परंपरा के दौरान जिस व्यक्ति या बुजुर्ग का गांव में सम्मान करना होता है उस व्यक्ति को गांव के सभी लोगों द्वारा सम्मान स्वरूप नए वस्त्र प्रदान किए जाते हैं. क्योंकि बुजुर्गों के बीच नए वस्त्र के रूप में उनके प्रमुख वस्त्र के रूप में पहचानी जाने वाली धोती को पहनने की परंपरा है लिहाजा आज भी यह परंपरा निभाई जाती है.
टंट्या मामा की प्रतिमा को धोती पहनाते हैं लोग: खास बात यह है कि यह परंपरा सिर्फ बुजुर्गों को उनके योगदान के लिए ही नहीं बल्कि मूर्तियों के रूप में पहचाने जाने वाले आदिवासियों के पूर्वजों के लिए भी पूरी शिद्दत से निभाई जाती है. इंदौर में हाल ही में विकसित किए गए टंट्या मामा चौराहे पर भी यह परंपरा आदिवासी वर्ग के लोगों के बीच निभाई जाती है. इसके लिए दरअसल यहां जो टंट्या मामा की आदमकद प्रतिमा लगी है. सम्मान स्वरूप प्रतिमा को ही आदिवासी वर्ग के लोग धोती पहनते हैं.
टंट्या मामा के बलिदान को किया जाता है याद:आदिवासियों के तीज त्यौहार या प्रमुख लोक पर्व के अवसर पर अंचल के लोग यहां पहुंचते हैं और टंट्या मामा की प्रतिमा को नई धोती पहन आते हैं. इस दौरान सभी लोग उनके समाज और देश के लिए बलिदान को भी याद करते हैं. नतीजतन ऐसा कोई मौका नहीं जाता जब यहां स्थापित की गई मूर्ति अलग से धोती पहने नजर नहीं आती हो. जब भी मूर्ति की धोती मैली या गंदी दिखने लगती है तो उसे तत्काल बदलकर पहनाया जाता है. संभवत प्रदेश में टंट्या मामा की यह पहली मूर्ति है जिसमें किसी मूर्ति को धोती पहने रहने के बावजूद अलग से कपड़े की धोती सम्मान स्वरूप पहनाई जाती हो.
आदिवासी वर्ग के सैकड़ों लोग होंगे शामिल: इंदौर में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भी समाज के प्रतिनिधि और टंट्या मामा के अनुयाई फिर टंट्या मामा प्रतिमा को नई धोती पहन कर उनका सम्मान करेंगे. इस परंपरा को लेकर जयस के राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा बताते हैं कि ''आदिवासियों में धोती पहना कर सम्मानित करने की प्राचीन परंपरा है. यही परंपरा आज भी टंट्या मामा के प्रति सम्मान की भावना दर्शाती है. लिहाजा इंदौर में मौजूद उनकी प्रतिमा का सम्मान भी धोती पहना कर किया जाएगा जिसमें आदिवासी वर्ग के सैकड़ों लोग शामिल होंगे.''
इसलिए होता है टंट्या मामा का धोती पहनाकर सम्मान:दरअसल स्वाधीनता के स्वर्णिम अतीत में जांबाजी का अध्याय बन चुके जननायक टंट्या मामा मध्य प्रदेश के पंधाना तहसील के ग्राम बडदा में जन्मे थे. 1857 की लड़ाई में टंट्या मामा ने खरगोन के किले की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इतना ही नहीं इस वीर जननायक ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा ग्रामीण जनता के शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई थी. उन्हें तभी से इंडियन रॉबिनहुड के नाम से जाना जाता है. अंग्रेजों ने इस वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को 4 दिसंबर 1889 में धोखे से गिरफ्तार कर फांसी दे दी थी. हालांकि टंट्या मामा के प्रति जनश्रद्धा और जन भावना ही है कि लोकनायक टंट्या मामा आज भी लोगों के दिल में जीवित हैं, जो विश्व आदिवासी दिवस जैसे अवसरों पर अपने अनुयाई और वर्ग के लोगों के बीच अपने पारंपरिक सम्मान के भी उतने ही हकदार हैं.