इंदौर। इंदौर बीएसएफ के एक कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए कारगिल युद्ध में शामिल हुए कैप्टन योगेंद्र सिंह आए. उनका सम्मान बीएसएफ अधिकारियों ने किया. इस दौरान कारगिल युद्ध में किस तरह से उन्होंने दुश्मनों का सामना किया, इसके अनुभव उन्होंने साझा किए. इसके साथ ही उन्होंने बीएसएफ जवानों को किस तरह से युद्ध भूमि में काम करना है, इसके बारे में विभिन्न तरह के टिप्स भी दिए.
कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर भिड़ंत :परमवीर चक्र से पुरस्कृत एवं करगिल युद्ध के नायक सूबेदार मेजर आनरेरी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को सीमा सुरक्षा बल के इंदौर में "केंद्रीय आयुध एवं युद्ध कौशल विद्यालय" परिसर में बीएसएफ आईजी अशोक कुमार यादव ने शाल-श्रीफल से सम्मानित किया. यादव देश से सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’से सम्मानित किए गए देश के सबसे युवा हैं. उनकी बहादुरी के कारण 1999 में करगिल युद्ध के दौरान 18 ग्रेनेडियर को ‘टाइगर हिल’के मुख्य भागों पर कब्जा करने में मदद मिली थी. आज़ादी के अमृत महोत्व कार्यक्रम की श्रृंखला में देश की हिफाज़त देश की सुरक्षा के अंतर्गत कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान उन्होंने कार्मिक और ट्रेनीज के मार्गदर्शन हेतु युद्ध कौशल के व्यवहारिक आयाम पर सम्बोधित किया. उन्होंने कहा मैं मुख्य अतिथि नहीं जवान हूं.
बीएसएफ के मेजर कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव सांस चले ना चले मेरा राष्ट्र चलना चाहिए :उन्होंने कहा कि इस वर्दी के ऊपर देश के 130 करोड़ लोग विश्वास और भरोसा रखते हैं. वो जानते है कि सेना है तो हम सुरक्षित हैं और चैन से सो पा रहे हैं. उस दौरान शहीद हुए अपने साथियों की शहादत का जिक्र करते हुए यादव भावुक हो गए. उन्होंने कहा मेरे शहीद साथियों का सोचना था कि सांस चले ना चले मेरा राष्ट्र चलना चाहिए. उस दौरान योगेंद्र यादव 17 गोली खाकर भी जिंदा बच गए थे. उन्होंने कहा कि फौजी मरने के लिए नहीं मारने के लिए होते हैं. बता दें कि 18 ग्रेनेडियर्स के सूबेदार-मेजर योगेंद्र सिंह यादव 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान घर-घर में एक जाना-पहचाना नाम बन गए थे. जब उन्होंने द्रास इलाके में टाइगर हिल पर कब्जा जमाया था. भारत और पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष तीन महीने तक चला था, जिसके लिए चार लोगों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. इनमें से एक कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव भी थे. कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव के पिता 11वीं कुमाऊं के सिपाही रामकृष्ण यादव भी 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ चुके थे.
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सिक्के से बची थी जान :कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह कारगिल युद्ध में शामिल हुए. निडर होकर उन्होंने दुश्मनों का सामना किया. इस दौरान दुश्मनों ने सभी को गोली मारी. मेरे हाथ व पैर पर 17 गोलियां लगी थीं. मैंने उफ तक नहीं की, वह मुझे भी मृत समझकर चले गए. तभी आवाज आई कि इसके सीने में गोली मार दो. दुश्मन सैनिकों का यह मानना था कि एक भी भारतीय सैनिक को जिंदा नहीं बख्शा जाएगा. उन्होंने मृत हुए सैनिकों को एक बार फिर गोलियों से भून डाला. इस दौरान उन्होंने मुझे भी सीने पर गोली मारी, लेकिन मेरे पॉकेट में एक सिक्का रखा हुआ था. जिसके कारण मेरी जान बच गई. (Param Vir Chakra winner Kargil War) (Param Vir Chakra winner Captain Yogendra Yadav) (Yogendra Yadav narrates incidents of Kargil War)