देश की पहली ट्रांसजेंडर जज जोइता मंडल से खास बात इंदौर। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचीं जोइता ने ETV-भारत के साथ कई मुद्दों पर और खासकर किन्नर समाज व रेड लाइट इलाके में रहने वाले परिवारों की समस्याओं पर खुलकर चर्चा की. साथ ही अपने जिंदगी के उन पलों को भी साझा किया, जब उन्होंने कई रातें रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर गुजारी थी.
सामाजिक स्वतंत्रता की मांग:जोइता मंडल का कहना है कि, ट्रांसजेंडर समुदाय को ना केवल देश के हर सेक्टर में आरक्षण मिलना चाहिए, बल्कि उन्हें मैरिज की स्वतंत्रता के अलावा बच्चे गोद लेने से लेकर समाज में कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की सामाजिक स्वतंत्रता भी चाहिए. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन समुदाय यदि इरादा कर ले तो सब संभव है.
सेवा और समर्पण का भाव: पश्चिम बंगाल की जोइता मंडल की पहचान आज देश की पहली 'किन्नर' (ट्रांसजेंडर) न्यायाधीश के तौर पर है. जोइता का जीवन में हार ना मानने का जज्बा दिखाता है कि वह अपने संघर्ष से सबक लेकर समाज को एक नई सीख दे रही हैं. वह वृद्धाश्रम के संचालन के साथ रेड लाइट इलाके में रह रहे परिवारों की जिंदगियां बदलने में लगी हैं. उनके इस सेवा और समर्पण भाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने उनका सम्मान करते हुए उन्हें लोक अदालत का न्यायाधीश नामांकित किया है. वे देश की पहली 'किन्नर' न्यायाधीश हैं.
बीते दिनों को किया याद:जोइता ने अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहा, "वे भी अपने को आम लड़की की तरह समझती थीं, बचपन इसी तरह बीता, जब उम्र 18 वर्ष के करीब थी, तब उनका भी मन दुर्गा पूजा के वक्त सजने संवरने का हुआ, वे ब्यूटी पार्लर जा पहुंचीं, लौटकर आई तो घर के लोग नाराज हुए, वे उसे लड़का मानते थे, उस वक्त उन्हें इतना पीटा गया कि वे चार दिन तक बिस्तर से नहीं उठ सकीं और इलाज के लिए चिकित्सक के पास भी नहीं ले जाया गया."
किन्नरों के डेरे में जाने का फैसला:जोइता बताती हैं कि दिनाजपुर में हर तरफ से मिली उपेक्षा के बाद उन्होंने किन्नरों के डेरे में जाने का फैसला किया और फिर वही सब करने लगीं जो आम किन्नर करते हैं, बच्चे के पैदा होने पर बधाई गाना, शादी में बहू को बधाई देने जाना. नाचने गाने का दौर शुरू हो गया. उसके बाद भी पढ़ाई जारी रखी.
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पीएम भी कर चुके हैं तारीफ:उन्होंने कहा, "जब कॉलेज जाती थी तो सभी उनका मजाक उड़ाया करते थे, इसके चलते पढ़ाई छोड़ दी. वर्ष 2009 में उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया, कहां जाएंगी कुछ भी तय नहीं था, इतना ही नहीं एक रुपये भी पास में नहीं था. दिनाजपुर पहुंची तो होटल में रुकने नहीं दिया गया, बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. होटल वाला खाना तक नहीं खिलाता, वह पैसे देकर कहता है कि हमें दुआ देकर चले जाओ."