होशंगाबाद। देवों के देवमहादेव की उपासना के लिए श्रावण मास उत्तम माना जाता है. श्रावण सोमवार को महादेव की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें बिल्व पत्र, दूध, दही, पंचामृत से शिव का अभिषेक किया जाता है, लेकिन महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक किया जाता है, जो विश्व में केवल एक ही जगह पर देखने को मिलता है. इस मंदिर को 'तिलसिंदूर' के नाम से जाना जाता है.
शिव मंदिर का महत्व
तिलसिंदूर महादेव मंदिर झरने, पक्षियों, हवाओं की सनसनाहट, चारों ओर हरियाली के बीच सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है. गुफा में स्थित शिवलिंग हजारों साल से स्थापित है, कहा जाता है कि भस्मासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था, जिसमें जिस सिर पर हाथ रख दे वो भस्म हो जाएगा. राक्षस ने यही प्रयोग भगवान शिव पर करने की कोशिश की थी, तब भगवान शिव भागते-भागते सतपुड़ा के पहाड़ों में त्रिशूल के जरिए सुरंग बनाते हुए तिलक सिंदूर की गुफाओं में शरण ली थी.
शिव मंदिर का इतिहास
तिलक सिंदूर की गुफा में शरण लेते हुए भगवान शिव पचमढ़ी की गुफा में पहुंचे, जहां सैकड़ों बरसों तक छिपकर भगवान ने तपस्या की. ये दुर्गम जंगली इलाका गौड़ जनजाति का क्षेत्र रहा है. आदिवासी पूजा-अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं. सतपुड़ा की पहाड़ियों पर विदर्भ से यहां तक गौड़ राजाओं का राज रहा है, जो पूजन में सिंदूर का उपयोग करते आए हैं. साथ ही कई अन्य अस्पष्ट बाते भी हैं, जिसमें कहा गया है कि जंगल में सिंदूर के पेड़ बहुतायत में थे, इसलिए आदिवासी सिंदूर से ही भगवान शिव का अभिषेक करने लगे. यहां आज भी भगवान शिव को सिंदूर ही चढ़ाया जाता है. ये सतपुड़ा की वादियों में इटारसी से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.