होशंगाबाद। सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था. 45 एकड़ क्षेत्र में फैला ये सोया प्लांट तब 14 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ था. वर्तमान में सोया प्लांट का हाल यह है कि यह बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर है.
इस सोयाबीन प्लांट का भूमिपूजन 1 फरवरी 1982 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और गृह राज्य मंत्री हजारीलाल रघुवंशी की अध्यक्षता में किया गया था. 3 अप्रैल 1984 को सोयाबीन प्लांट का उद्घाटन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था. एक समय था जब यह प्लांट हजारों लोगों को रोजगार देता था. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारों में खुशहाली हुआ करती थी, लेकिन नेताओं, अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते प्लांट आज जंग खा रहा है.
कर्मचारियों का कहना है कि चालू रहने तक इस प्लांट से निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों में भी होता था. डीओसी के निर्यात से विदेशी करंसी के रूप में करोड़ों रूपये की आय तिलहन संघ को होती थी. लेकिन फायदे के बाद भी सोयाबीन प्लांट कई सालों के घाटे में चलने के चलते बंद हो गया. वहीं अब स्थिति यह है कि प्लांट में लगी महंगी मशीनें जंग खा रही है.
पहले जहां प्लांट में सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा लगा रहता था. वहां अब मजह दो कर्मचारी सुरक्षा में तैनात हैं. पूरा प्लांट किसी वीरान खंडहर से कम नजर नहीं आता है.सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के एक हिस्से को गोदामों में तब्दील कर दिया गया है. इन गोदामों में पिछले कई सालों से गेहूं का भंडारण किया जा रहा है. जिससे तिलहन संघ को लाखों की आमदनी होती है और पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है.