नर्मदापुरम।जिस रूट पर नाग देवता के दर्शन करने के लिए देश भर के श्रद्धालु नागद्वारी आते हैं, वहां अब धीरे-धीरे सांपों की संख्या कम होने लगी है. नागद्वारी ट्रैक पर विभिन्न प्रकार के दुर्लभ सांप सालभर दिखाई देते थे, जो अब और घने जंगलों की ओर संकुचित हो गए. इसमें कुछ विशेष दुर्लभ प्रजातियां शामिल है. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की रिसर्च के अनुसार पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि विभिन्न प्रकार की सांपों की प्रजाति अब नागद्वारी ट्रैक पर नहीं मिल रही है.
नागद्वारी ट्रैक पर बड़ी संख्या में सांप मौजूदः इसे लेकर वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट हरेंद्र साहू कहते हैं कि "कुछ समय पहले हुई रिसर्च के अनुसार नागद्वारी ट्रैक के आसपास बड़ी संख्या में सांपों की मौजूदगी रहती थी. कई लोगों को यहां दुर्लभ पिट्स बेबी वाइपर सहित अन्य प्रजातियां दिखाई देती थी, लेकिन रिसर्चरों और वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट की टीम पिछले कई समय से यहां पर नजर बनाए हुए थे और उनकी रिपोर्ट के अनुसार इस ट्रैक और नागद्वारी के आसपास मौजूद विभिन्न प्रकार के सर्प प्रजातियों की संख्या कहीं ना कहीं कम हुई है. इस स्थान से सर्प जंगल के दूसरे अन्य स्थानों पर डाइवर्ट हो गए हैं. हरेंद्र साहू कहते हैं कि इसका सबसे बड़ा कारण यहां बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालु और लगातार यहां चलने वाली गतिविधियां शामिल है. उन्होंने बताया कि भले ही 10-12 दिन के लिए यह ट्रैक खोला जाता है, लेकिन यहां मानव की उपस्थिति होने के कारण सरीसृप लगातार यहां से दूर होते जा रहा है. इसी लेकर कुछ सुधार के बिंदु भी वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट में वरिष्ठ अधिकारियों को पूर्व में भेजे हैं.
सदियों से संचालित नागद्वारी मेलाः आपको बता दें कि ऐतिहासिक नागद्वारी मेला सदियों से यहां संचालित है, महाराष्ट्र सहित दूसरे अन्य स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु नाग पंचमी के मौके पर नागद्वारी पहुंचते हैं. कहा जाता है कि नागद्वारी में पदम शेषनाग के साक्षात प्रमाण यहां किंवदंतियों के अनुसार देखे गए हैं और सरीसृप की बस्ती भी यहां पर हुआ करती थी. लोगों ने जिस स्थान पर पदम शिव का मंदिर है. वहां सैकड़ों हजारों बार सर्पों को खुले में घूमते हुए देखा है और जिस ट्रैक पर श्रद्धालु यात्रा करते हैं. उस 16 किलोमीटर के ट्रैक पर भी बड़ी संख्या में सरीसृप देखे जाते थे, जो अब धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं.
मनुष्यों की दखलअंदाजी के चलते सांपों ने बदले रहवासः सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के उपसंचालक और सांपों पर शोध करने वाले संदीप फेलोज बताते हैं कि शोध पत्रिका बाइट फील्ड गिवन में डेविड के स्कॉट ने अपने शोध में बताया है कि सरीसृपों के रहवास में मनुष्यों की दखलअंदाजी. वाहनों की आवाजाही, मौसम व अन्य कारणों से जमीन पर रेंगने वाले जीवों पर खतरा मंडरा रहा है. इसमें मुख्य रूप से सांप कहीं ना कहीं अपना अस्तित्व खोते नजर आ रहे हैं. संदीप सरोज बताते हैं कि सतपुड़ा के आसपास कई दुर्लभ सांप कुछ सालों पहले तक बड़ी तादात में दिखाई देते थे, जिनकी संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है. इसमें पिट बेबी वाइपर, फ्लाइंग स्नेक सहित कुछ ऐसी प्रजाति थी, जो यहां दिखाई देती थी. नागद्वारी ट्रैक पर साल भर कई प्रजाति के साथ देखे जाते थे, लेकिन अब श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने के कारण स्नेक ने अपना रास्ता और रहवास बदल लिया है.