होशंगाबाद। सनातन धर्म में सावन का महीना अति विशिष्ट माना जाता है. चाहे कुंवारी लड़कियां हो या शादीशुदा महिलाएं सभी भगवान शिव को मनाने के लिए सावन मास में विशेष जतन करती हैं. इटारसी के श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में कई वर्षों से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पार्थिव शिव निर्माण किया जाता है. दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है.
श्रावण मास: महिलाएं विशेष रूप से करती हैं शिव की आराधना, जानें क्यों
सनातन धर्म में श्रावण मास अति विशिष्ट माना जाता है. चाहे कुंवारी लड़कियां हो या शादीशुदा महिलाएं सभी भगवान शिव को मनाने के लिए सावन मास में विशेष पूजा अर्चना करती हैं.
सावन माह का महत्व बताते हुए पं. विनोद दुबे ने कहा कि भगवान शिव श्रावण मास में अत्यधिक प्रसन्न रहते हैं और भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं. उन्होंने कहा, बहुत संक्षिप्त सी कथा है. एक बार एक गांव में भीषण अकाल पड़ा और गांव में अधिकांश पुरुषों की मौत हो गई, एक महिला ऐसी थी, जिसका पति पूर्व में ही मर चुका था और उसका एकमात्र 14 वर्ष का बच्चा था जो विपत्ती के समय मर गया. वह महिला शिव भक्त थी और गांव के शिव मंदिर ले जाकर उसने अपने बेटे को रख दिया और उसने संकल्प लिया कि जब तक मेरा बेटा जीवित नहीं होगा वह अभिषेक करना बंद नहीं करेगी. अगले 48 घंटे में अन्न, जल त्यागकर भगवान का अभिषेक करने वाली महिला से खुश होकर भगवान शिव ने दर्शन दिए और उसके बेटे को पुनः जीवित किया और सुखी रहने का आशीर्वाद दिया.
पं. विनोद दुबे ने कहा कि कलयुग में इस तरह की कथाओं को कोई स्वीकार नहीं करता है लेकिन भगवान शिव जो भी रचना करते हैं, वह सही होती है, इसी कारण भगवान शिव पर लोग विश्वास करते हैं. उन्होंने ने कहा कि उत्तर भारत के एक शहर में ग्रीष्मकाल में अत्यधिक सूखा पड़ा और पीने के पानी का संकट गहराया तब स्थिति यह हुई कि गांव के लोगों ने तय किया कि वो सावन मास के पानी के संकट के कारण इस बार भगवान शिव का अभिषेक नहीं करेंगे. गांव की एक बुजुर्ग महिला ने गांव के शिव मंदिर में इस संकल्प के साथ भगवान शिव के समक्ष बैठ गईं कि जब तक इस गांव में वर्षा नहीं होगी वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी. करीब 13 दिनों की तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उस गांव में घनघोर बारिश हुई. तब गांव के सारे लोगों ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और अगले एक माह तक भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया और निरंतर रूद्राभिषेक किया.