नर्मदापुरम। करीब सौ वर्ष से अधिक पुराने नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल में आज भी बिना जाति बंधन के भारतीय संस्कृति, उपनिषद, संस्कृत, एवं वेदों की शिक्षा दी जा रही है. इतना ही नहीं इस प्राचीन गुरुकुल के शिष्य आज विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति, वेदों,उपनिषदों की शिक्षा बाहरी देशों में देने जा रहे हैं. ताकि संस्कृति को बचाया जा सके. इस प्राचीन गुरुकुल में आज भी गुरु पुरानी तकनीक से ही शिष्यों को शिक्षा ग्रहण करा रहे हैं. सुबह 5 बजे से दिनचर्या, की शुरुआत योग, हवन, यज्ञ, भोजन जैसी संपूर्ण शिक्षा से इस गुरुकुल में हो रही है. भारतीय संस्कृति, उपनिषदों की शिक्षा धर्म पर्यावरण की शिक्षा पाकर यह शिष्य बाहरी देशों में जाकर प्रचार प्रसार करते हैं.
111 साल से चल रही गुरुकुल परंपरा: नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल के आचार्य आयुष आर्य बताते हैं की सन 1912 में आर्ष गुरुकुल की स्थापना हुई. इसे 111 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं. अभी तक आर्ष गुरुकुल पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र में भारत की संस्कृति को संजोए रखा है. प्राचीन ऋषि मुनि जो वेद संस्कृत द्वारा संस्कृति का पालन किया जाता था, वैसे ही यह आर्ष गुरुकुल कर रहा है. पूरे भारतवर्ष के बच्चे यहां पर शिक्षा ग्रहण करते हैं. यहां किसी भी जाति का बंधन नहीं है. प्रत्येक जाति के बच्चों को यहां शिक्षा दी जाती है. गुरुकुल में संस्कृति और उपनिषदों की शिक्षा दी जाती है, गौ शिक्षा, यज्ञ शिक्षा की जो हमारी शिक्षाएं हैं.आचार्य आयुष ने बताया कि वर्तमान में भारत में हमारे आर्य संस्कृति को मानने वाले कई लोग हैं. आर्ष गुरुकुल नर्मदापुरम के शिष्य 24 देशों में जाकर प्रचार प्रसार और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. उस समय पंडित नंदलाल मुरलीधर जी ने इसकी स्थापना की थी. उसके बाद कई अन्य आचार्य यहां पर आए. वर्तमान में हमारे यहां निदेशक के रूप में आचार्य रसीपद हैं. वहीं आचार्य सिंधु सत आर्य गुरुकुल के प्रधानाचार्य सुशोभित हैं. उन्हीं के संरक्षण में यह गुरुकुल पूरी गतिविधियां एवं पूरे प्रचार का कार्य होता है.