ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने भी शासन के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (Public Health Engineering Department) के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों (Daily wage workers) को स्थाई वर्गीकृत करने के 14 साल पुराने आदेश को अवैध बताते हुए खारिज कर दिया गया था. इससे पहले इंदौर हाईकोर्ट ने भी शासन की इस कार्रवाई को गलत ठहराया था. हाईकोर्ट ने ग्वालियर चंबल संभाग के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के 90 कर्मचारियों को दस-दस हजार रुपए का हर्जाना देने के आदेश दिए हैं. इसमें 5-5 हजार की राशि याचिकाकर्ता कर्मचारियों को मिलेगी, जबकि पांच पांच हजार रुपए की राशि कोरोना कोष में जमा कराई जाएगी. यह राशि शासन को 3 महीने में भुगतान करनी होगी.
न्यूनतम वेतनमान के लाभ का मामला
गौरतलब है कि 7 मई 2003 को शासन ने विभाग के इन कर्मचारियों को स्थाई वर्गीकृत कर्मचारी का दर्जा दिया था. जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर इन कर्मचारियों ने न्यूनतम वेतनमान का लाभ देने की मांग की, तो 2017 में मुख्य अभियंता ने स्थाई वर्गीकृत कर्मचारियों को यह कहते हुए लाभ देने से मना कर दिया कि 2003 में कर्मचारियों को त्रुटि वश स्थाई वर्ग कर्मचारी का दर्जा दे दिया था. इसलिए इसे निरस्त किया जाता है.
90 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई
कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों को वर्गीकरण के और नियमित करने की जिम्मेदारी से बचने के लिए शासन बार-बार ऐसे आदेश जारी करता है. चीफ इंजीनियर के आदेश के खिलाफ ग्वालियर अंचल के कर्मचारियों की कुल 90 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की गई. जस्टिस विशाल मिश्रा ने आदेश दिया कि प्रत्येक याचिका में शासन पर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाए. इसमें पांच-पांच हजार रुपए प्रत्येक याचिकाकर्ता को दिए जाएंगे, जबकि शेष पांच पांच हजार रुपए कोरोना कोष में जमा किए जाएंगे.
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मध्यप्रदेश शासन ने दिया था लाभ
इस राशि का उपयोग कोविड काल में संकट से जूझ रहे लोगों के कल्याण के लिए किया जाएगा. एडवोकेट देवेश शर्मा ने बताया कि 7 मई 2003 को मध्यप्रदेश शासन ने कई दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को स्थाई वर्गीकरण का लाभ दिया था. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया, जिसमें सभी स्थाई कर्मचारियों को न्यूनतम वेतनमान देने का आदेश दिया था. इसके आधार पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी कई कर्मचारियों ने याचिका दायर की और न्यूनतम वेतनमान देने की मांग की. इस पर कोर्ट ने विभाग को आदेश दिया कि वह कर्मचारियों के दस्तावेज का सत्यापन करें और उसके आधार पर न्यूनतम वेतन मान का लाभ दें.