धार।विंध्याचल पर्वत माला में प्रकृति की गोद में बसी पर्यटन नगरी मांडू, जहां पर एक से एक सुंदर प्राचीन धरोहर हैं. मांडू से सटे हुए झाबरी गांव की हवेली वाली टेकरी उन्हीं में से एक है. जिसके पीछे एक रहस्यमयी कहानी है. मंडू की सबसे ऊंची पहाड़ी पर इमारत बनते-बनते रह गई. जिसके अवशेष आज भी पहाड़ी के ऊपरी तल पर यहां-वहां बिखरे पड़े हुए हैं. इतना ही नहीं इस पहाड़ी के चारों ओर लाखों की संख्या में इमारत बनाने के उपयोग में आने वाले गोल-गोल काले पत्थरों के ढेर भी लगे हुए हैं, जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि इस पहाड़ी पर कोई सुंदर इमारत बनी थी, जो अतीत में बनते बनते रह गई, जिसके चलते ग्रामीण इसे हवेली वाली टेकरी के नाम से जानते हैं.
दो फाउंडेशन और लाखों काले पत्थर
शासन द्वारा मान्यता प्राप्त मांडू के गाइड धीरज चौधरी बताते हैं कि झाबरी में समुद्र तल से 2200 फीट ऊंची है हवेली वाली टेकरी है, जिसके चारों ओर लाखों की संख्या में काले गोल पत्थर बिखरे हुए हैं. जिनका उपयोग अतीत में इमारत बनाने में किया जाता था, वहीं हवेली वाली टेकरी के ऊपरी भाग पर कोई सुंदर हवेली बननी थी. जिसके फाउंडेशन के अवशेष आज भी पहाड़ी पर मौजूद है. पहाड़ी पर दो इमारतों के फाउंडेशन बने हुए दिखाई देते हैं. जो समय के साथ-साथ धीरे-धीरे टूट-फूट गए गए हैं. हवेली वाली टेकरी पर यदि कोई इमारत बनती तो वह मांडू का सबसे सुंदर पर्यटन स्थल होता.
यहां से मां नर्मदा के दर्शन भी होते हैं
समुद्र तल से 2200 फीट ऊंची हवेली वाली टेकरी के ऊपरी भाग से खड़े होकर चारों ओर देखने पर एक जैसा सुंदर और हरा-भरा नजारा दिखाई देता है. हवेली वाली टेकरी मांडू के पूर्वी- दक्षिणी भाग में स्थित है. जिसके चलते इसके ऊपरी हिस्से से दक्षिणी निमाड़ में बहने वाली नर्मदा के भी दर्शन होते हैं. वहीं जहांगीर दरवाजा भी हवेली वाली टेकरी से साफ दिखाई देता है.
यहां से दिखता है सुंदर दृश्य हवेली के पीछे का रहस्य
हवेली वाली टेकरी के ऊपरी हिस्से पर दो इमारतों के फाउंडेशन बने हुए हैं. जिन पर इमारतों की दीवारें खड़ी होना थी. यह इमारत कौन बना रहा था, कौन काले काले इन लाखों पत्थरों को इस हवेली वाली टेकरी के चारों ओर लेकर आया था. हवेली वाली टेकरी के इस रहस्य को कोई नहीं जान पाया है. फाउंडेशन की जो बनावट है उससे तो यह साफ होता है कि यह 16वीं शताब्दी का निर्माण है. 17वीं शताब्दी के आसपास मांडू वीरान शहर में धीरे-धीरे तब्दील हो गया, जिसके चलते हो सकता है कि इस पहाड़ी पर बनने वाली हवेली का काम भी अधूरा छूट गया हो. इस पहाड़ी पर हवेली बनाने वाला शासक भी उसे अधूरा छोड़कर मांडू से चला गया, जिसके चलते मांडू में एक सुंदर पर्यटक स्थल बनते-बनते रह गया.
मांडू की सबसे ऊंची पहाड़ी अनदेखी के चलते पर्यटकों की नजरों से ओझल
हवेली वाली टेकरी पर्यटन विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अनदेखी के चलते वीरान हो चुकी है, इस टेकरी के चारों ओर अवैध कब्जा हो चुका है. टेकरी के ऊपरी हिस्से पर खेती होने लगी है. जिससे पहाड़ी पर मौजूद इमारत के फाउंडेशन के पत्थर टूट फूट रहे हैं. यहां वहां बिखर रहे हैं. जिससे धीरे-धीरे फाउंडेशन के पत्थर भी अतीत के पन्नों में कहीं घूम होते चले जा रहे हैं. यदि इनका संरक्षण होता और यहां आने का रास्ता पर्यटकों के लिए बना दिया जाता, तो यहां पर भी बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते और उन्हें मांडू की सबसे ऊंची पहाड़ी से खड़े होकर दिखने वाले सुंदर दृश्यों को देखा करते. जिससे मांडू में पर्यटन को बढ़ावा मिलता.