धार। बसंत पंचमी के आते ही मध्यप्रदेश की 800 सौ साल पुरानी भोजशाला फिर एक बार चर्चा में है. हालांकि इस बार बसंत पंचमी पर शुक्रवार नहीं होने से इस बार जिला प्रशासन राहत की सांस ले रहा है. मध्यप्रदेश की अयोध्या कही जानी वाली धार की भोजशाला में बसंत पंचमी के मौके पर हिंदूओं को पूरे दिन मां सरस्वती की पूजा की अनुमति होती है. भोजशाला के इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है. मध्यप्रदेश के परमार राजा महाराज भोज सरस्वती देवी की उपासक थे. राजा भोज ने ही भोजशाला में मां सरस्वती के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था.
भोजशाला में इंद्रेश कुमार की धर्म सभा: भोजशाला में इस बार 26 जनवरी से शुरु होने जा रहे भोज उत्सव में बसंत पंचत के दिन मां सरस्वती के यज्ञ से शुरुआत होगी. इसी दिन सरस्वती देवी की शोभा यात्रा निकाली जाएगी. इस उत्सव में इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक इंद्रेश कुमार धर्मसभा को संबोधित करेंगे. साल भर की प्रतीक्षा के बाद होने भोजशाला में होने वाले धार्मिक आयोजन में मां सरस्वती की महाआरती होगी. इसी दिन यहां मातृशक्ति सम्मेलन का भी आयोजन किया गया है.
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क्या है भोजशाला का इतिहास: इतिहास बताता है कि भोजशाला एक महाविद्यालय के रुप में हुआ करता था. 1034 में यहां मां सरस्वती की प्रतिमा की स्थापना की गई थी. बाद में कहा जाता है कि 1875 में यहां खुदाई हुई तो उसमें ये प्रतिमा निकली और अंग्रेजों का पॉलीटिकल एजेंट प्रतिमा को इंग्लैंड ले गया. बताया जाता है कि ये प्रतिमा लंदन के एक संग्रहालय में हिफाजत से रखी हुई है. इतिहास में ये बताया गया कि राजवंश काल के दौरान यहां मुस्लिम वर्ग को नमाज की मंजूरी दे दी गई थी. मुस्लिम समाज की ओर से यहां लंबे समय तक नमाज अता की जाती रही और इसी की वजह से उनका ये दावा मजबूत हुआ ये कमाल मौलाना की दरगाह है. हालांकि हिंदुओं का दावा लगातार बना रहा कि ये हिंदू पूजा स्थल है, सरस्वती मंदिर है.
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भोजशाला विवाद की जड़ कहां:भोजशाला को लेकर विवाद का इतिहास भी काफी पुराना है. 1902 से इसकी शुरुआत होती है. जब बताया जाता है कि यहां मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक दिखाई दिए. इसी के आधार पर ये दावा किया गया ये भोजशाला मंदिर है. इसके बाद भोजशाला पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आ गया. असल विवाद की वजह बना वो आदेश जिसमें भोजशाला को कमाल मौलाना की मस्जिद बताया गया और यहां शुक्रवार को नमाज की अनुमति का आदेश जारी किया गया. धीरे-धीरे ये मुद्दा सियासी रंगत लेने लगा. हर बार तनाव उस समय बढ़ता है, जब बसंत पंचमी और शुक्रवार एक साथ आता है. 2003 में ऐसा ही हुआ था. भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव में हिंसा फैल गई थी. फिर इसी साल से व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किए गए थे. तय किया गया कि हर मंगलवार को बगैर फूल-माला के और बसंत पंचमी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिंदुओं को पूजा की अनुमति दी गई. इसी तरह से शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. जबकि बाकि के पांच दिन भोजशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है.