छिंदवाड़ा। आदर्श गांव धनौरा और बारह बरियारी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. यहां ना पीने को पानी है और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं. यहीं नहीं यहां कब्र के लिए दो गज जमीन मिलना भी मुश्किल है. लोग शवों को दफनाने के लिए दूसरे गांव के कब्रिस्तान में जाने के लिए मजबूर हैं. वहीं शवों को जलाने के लिए श्मशान घाट भी नहीं है.
आदर्श गांव का हाल-बेहाल, लोगों को कब्र के लिए दो गज जमीन नहीं हो रही नसीब
आदर्श गांव में अन्नदाता को खुद की कब्र के लिए दो गज जमीन नसीब नहीं हो रही है. यहां मृतक के परिजन कई किलोमीटर दूर रिश्तेदारों के घर से अर्थियां उठाने को मजबूर हैं.
धनौरा के रहने वाले नवाब मंसूरी के बेटे की बीमारी के चलते मौत हो गई थी. घर के चिराग के बुझ जाने से परिवार में गमगीन माहौल था, लेकिन नवाब मंसूरी को अपने बेटे के शव को दफनाने की चिंता सता रही थी. गांव में कब्रिस्तान नहीं होने के चलते वह अपने बेटे के शव को 40 किमी दूर अपने रिश्तेदार के घर लेकर गए और अंतिम संस्कार किया.
ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी जमीन ली जा रही थी, तब उन्हें सुविधाओं का लालच दिया गया था, लेकिन अब ना तो स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और ना पीने का पानी. धनौरा और बारह बरियारी आदर्श गांव हैं. यहां आदर्श गांव का बड़ा सा स्वागत द्वार भी है, लेकिन गांव में ना अस्पताल है और ना ही पीने का पानी. जिले में बने सबसे बड़े डैम माचागोरा को लेकर राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ लगी है. जिसके नाम पर चुनाव में खूब वोट भी मांगे गए, लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है.