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नर्स डे स्पेशल: छिंदवाड़ा की एक नर्स के फर्ज की कहानी, ऐसे कर रही हैं देश सेवा

कोरोना महामारी के बीच आज नर्स डे है. इन दिनों पूर देश में नर्स कोरोना महामारी में अपनी जान न्यौछावर करके लोगों से लड़ रही हैं. ऐसे कई कोरोना वॉरियर्स हैं, जिनकी कहानी सुनकर उन्हें सलाम करने को जी करता है, ऐसी ही एक नर्स हैं जो अपनी 14 महीने की बेटी को छोड़कर लगातार एक महीने से क्वारंटाइन सेंटर में अपना फर्ज निभा रही हैं.

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ऐसे कर रही हैं देश सेवा

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Published : May 12, 2020, 5:48 PM IST

छिंदवाड़ा। आज नर्स डे है. इन दिनों पूर देश में नर्स कोरोना महामारी में अपनी जान न्यौछावर करके लोगों से लड़ रही हैं. ऐसे कई कोरोना वॉरियर्स हैं, जिनकी कहानी सुनकर उन्हें सलाम करने को जी करता है, ऐसी ही एक नर्स हैं जो अपनी 14 महीने की बेटी को छोड़कर लगातार एक महीने से क्वारंटाइन सेंटर में अपना फर्ज निभा रही हैं

ऐसे कर रही हैं देश सेवा

परिवार बाद में, देश पहले

दरअसल छिंदवाड़ा के सिंगोड़ी में बने क्वारंटाइन सेंटर में पूनम भादे लगातार एक महीने से अपनी मासूम बच्ची को छोड़कर खतरे के बीच गर्व से अपना फर्ज निभा रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि, शायद भगवान ने उन्हें इसी दिन के लिए स्वास्थ्य विभाग में नौकरी दिलाई है, इसलिए परिवार बाद में और देश पहले.

बुरहानपुर से हुआ था तबादला

कोरोना वॉरियर्स पूनम भादे का कहना है कि उनका तबादला जैसे ही बुरहानपुर से छिंदवाड़ा हुआ, तो उन्हें लगा कि अब अपनी 14 महीने की बेटी के साथ कीमती समय बिता पाएंगे. लेकिन उसी समय लॉकडाउन लगा और उनके स्वास्थ्य केंद्र को क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है. जिसके बाद से वह अपनी बेटी को छोड़कर लगातार सेवा दे रहे रही हैं.

एक महीने से बेटी से नहीं हुई मुलाकात

नर्स पूनम भादे जिस क्वारंटाइन सेंटर में अपना फर्ज निभा रही हैं, उसी सेंटर में अब तक 4 कोरोना के संक्रमित मरीज मिल चुके हैं, लेकिन वो बिना डरे अपने फर्ज को प्राथमिकता देते हुए लगातार काम कर रही हैं. दरअसल छिंदवाड़ा में मिले पहले कोरोना मरीज के संपर्क में आए सभी लोगों को इसी सेंटर में क्वारंटाइन किया गया था. जिसके बाद जाने-अनजाने में कोरोना वायरस घर तक ना पहुंच जाए, इसलिए वो एक महीने से अपनी बेटी से नहीं मिलीं. हालांकि मां की ममता मानती नहीं, इसलिए वो डिजिटल तकनीक का उपयोग कर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से हर दिन अपनी बेटी का दीदार और दुलार करती हैं.

मासूम का सहारा बने दादा-दादी

पूनम भादे का कहना है कि, उनके पति बैंक में काम करते हैं, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को गांव में दादा- दादी के पास छोड़ा है. अब दादा-दादी बेटी की देखरेख के साथ मां और पिता का फर्ज निभा रहे हैं. इस संक्रमण काल में जहां हर कोई अपने घर से बाहर निकलने में डर रहा है. वहीं कोरोना योद्धा पूनम भादे बताती हैं कि, उनके पति समेत उनके सास-ससुर सभी परिजनों ने कहा कि, इस संकट की घड़ी में देश को उनकी जरूरत है. इसलिए वो काम करें, बेटी को परिवार संभाल लेगा, परिवार के सहयोग की वजह से ही वे डटकर खड़ी हैं और खुद कहती हैं कि परिवार बाद में है, लेकिन देश के लिए कम मौके मिलते हैं.

25 किमी. का सफर तय करके पहुंचती हैं ड्यूटी

पूनम भादे ने बताया कि, संक्रमण के डर के कारण कोई उन्हें गांव में मकान भी किराए से नहीं दे रहा है, इसलिए वो हर दिन आना-जाना करती हैं. एक महीने पहले तक उनको दोपहिया चलाना भी नहीं आता था, लेकिन उनके पति ने उन्हें दोपहिया चलाना सिखाया. अब वो आसानी से 25 किलोमीटर का हर दिन सफर तय कर ड्यूटी पर पहुंचती हैं.

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