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...तो कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में 2012 में ही शुरू करा दी थी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ! देखिए क्या कहते हैं किसान

देश भर में कृषि कानूनों को लेकर लगातार किसान विरोध कर रहे है, वहीं इन कानूनों में शामिल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी किसान विरोध में हैं. लेकिन छिंदवाड़ा के किसान 2012 से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करके दो गुना मुनाफा कमा रहे हैं.

Chhindwara
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

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Published : Dec 16, 2020, 9:19 AM IST

Updated : Dec 16, 2020, 9:47 AM IST

छिंदवाड़ा। कृषि कानून को लेकर भले ही इन दिनों देश की सियासत गर्म है और सड़कों पर किसान विरोध में उतरा है. कृषि कानूनों में शामिल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी हल्ला है, लेकिन छिंदवाड़ा का किसान इसी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए लागत से दो गुना तक मुनाफा ले रहा है.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

8 साल पहले निजी कंपनी के साथ किसानों ने शुरू की थी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

छिंदवाड़ा जिले के किसानों ने 2012 में निजी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की शुरुआत की थी. पेप्सीको ने चिप्स के लिए आलू उत्पादन के लिए किसानों से अनुबंध किया था, सबसे पहले इसके तहत महज 5 एकड़ में आलू की फसल लगाई गई थी लेकिन आज जिले में करीब तीन हजार एकड़ जमीन में आलू बोया जा रहा है और यहां से हर साल सैकड़ों टन आलू निर्यात किया जाता है. किसानों को बीज से लेकर दवाई तक दी जाती है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए कंपनी और किसानों के बीच वेंडर होते हैं, कंपनी वेंडरों के जरिए किसानों से संपर्क करती है और फिर किसानों को खेतों में लगाने के लिए बीज से लेकर उसमें उपयोग की जाने वाली दवाइयां तक मुहैया कराती है. बाद में लागत मूल्य निकालने के साथ ही निर्धारित रेट तय होता है और उसी रेट पर कंपनियां किसानों से उनकी उपज खरीदती है.

ईटीवी भारत को किसानों ने बताया कि कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट के बाद किसी प्रकार की समस्या नहीं होती 30 से 40 हजार प्रति एकड़ खर्च होता है और मुनाफा भी 60 से 70 हजार रुपए प्रति एकड़ तक हो जाता है. निश्चित रेट में कंपनियां उनसे उनकी उपज खरीदती है और उन्हें कहीं बाहर भी नहीं ले जाना पड़ता. किसान कलेक्शन सेंटर में अपनी उपज जमा करता है जहां से सीधे एक कंपनी के वेयर हाउसों में उनकी उपज पहुंचती है.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

50 से 60 हजार प्रति एकड़ कमाता है किसान

छिंदवाड़ा जिले के उमरेठ, बिछुवा, मोहखेड़ ब्लॉक के किसानों ने कंपनी के साथ अनुबंध किया है. उमरेठ रिधोरा में करीब 80 फीसद किसान इसी प्रकार खेती कर रहे हैं. कंपनी और किसानों के बीच करार के बाद अगर बाजार में उनकी फसल के रेट ज्यादा हैं तो किसान बाजार में भी फसल बेच सकता है.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

-क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming)

इसमें किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता और कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा. इसमें खाद और बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के ही होते हैं.

अनुबंध पर खेती का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए. कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता. इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं. कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है. फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है.

ये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हाल ही में सरकार द्वारा बनाए गए तीन कानूनों में भी है.सरकार जिस अनुबंध खेती (Contract Farming) को किसानों की किस्मत बदलने वाला बता रही है. विपक्ष और किसान संगठनों का कहना है कि इस कृषि कानून से खेती पर अडानी-अंबानी जैसे कॉरपोरेट हावी हो जाएंगे, किसान मजदूर बन कर रह जाएंगे, और इसीलिए किसान लगातार इसका विरोध कर रहे है.

-क्या है कृषि कानून 2020

  • कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन सुविधा) विधेयक 2020

इस के अनुसार किसान अपनी फसले अपने मुताबिक मनचाही जगह पर बेच सकते हैं। यहां पर कोई भी दखल अंदाजी नहीं कर सकता है, यानी की एग्रीकल्चर मार्केंटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) के बाहर भी फसलों को बेच- खरीद सकते हैं. फसल की ब्रिकी पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, ऑनलाईन भी बेच सकते हैं। साथ ही अच्छा दाम मिलेगा.

  • मूल्य आश्वासन एंव कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एंव संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020

देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है. फसल खराब होने पर कॉन्ट्रेक्टर को पूरी भरपाई करनी होगी. किसान अपने दाम पर कंपनियों को फसल बेच सकेंगे. इससे उम्मीद जताई जारही है कि किसानों की आय बढ़ेगी.

  • आवश्यक वस्तु संशोधन बिल 2020

आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था। खाद्य तेल, दाल, तिल आलू, प्याज जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा ली गई है. अति आवश्यक होने पर ही स्टॉक लिमिट को लगाया जाएगा, इसमें राष्ट्रीय आपदा, सूखा पड़ जाना शामिल है. प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए ऐसी कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी. उत्पादन स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा.

-एपीएमसी क्या है ?

सन् 1970 में एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (रेगुलेशन) ऐक्ट ( एपीएमसी ऐक्ट) के अंतर्गत कृषि विपणन समितियां बनी थीं जिसे एपीएमसी कहा जाता है, इन समितियों का मकसद बाजार की अनिश्चितताओं से किसानों को बचाना था.

Last Updated : Dec 16, 2020, 9:47 AM IST

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