छिंदवाड़ा। दुनिया सोशल मीडिया के युग में जी रही हो, लेकिन छिंदवाड़ा में रामलीला मंचन की परंपरा पिछले 131 सालों से अपने अस्तित्व बनाए हुए है और ये 132 वां साल है जहां कोरोना ने काफी कुछ बदल कर रख दिया है. हमारी परंपरा से लेकर पूजा पद्दति तक. मगर हम यहां बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश की सबसे पुरानी रामलीला मंडल की, जो लगातार अपनी परंपरा को निभाता आ रहा है. लालटेन की रोशनी में शुरू हुई रामलीला 2020 में 132वें साल में आधुनिक तकनीकों के साथ प्रवेश कर चुकी है. समय बदलने के साथ ही रामलीला मंडल ने बदलाव किए, लेकिन संस्कार और परंपरा प्राचीन तौर-तरीके वाले ही हैं. आज मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला का मंचन उसी ढंग से होता है, जिस तरह से 132 साल पहले शुरू हुआ था.
कोरोना काल में बदलेगी 132 साल की परंपरा
रामलीला समिती के मुख्य निर्देशक विजय आनंद दुबे ने बताया कि देश में इमरजेंसी के हालात के बाद भी रामलीला नहीं रुकी थी और ना ही कोरोना में रुकेगी. लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला है इसलिए मर्यादाओं का ध्यान रखा जाएगा. हर साल रामलीला 14 दिन की होती थी, जिसे इस बार 10 दिनों का किया गया है तो वहीं 4 घंटे की लीला को हर दिन डेढ़ घंटे में ही समेटा जाएगा. लेकिन इसके लिए तैयारियां शुरु हो गई है और लोग अपने घरों में बैठकर रामलीला देख सकें, इसके लिए सोशल मीडिया का भी उपयोग किया जाएगा. यू-ट्यूब पर भी लाइव स्ट्रीमिंग होगी.
कोरोना ने बदले राम-रावण के रुप
कोरोना जो ना कराए! अब राम और रावण मंच पर आने वाले हैं तो वो मास्क और फेस शील्ड में एक्टिंग करते दिखेंगे. इसके साथ ही मंच के पीछे सेनेटाईजर का भी इस्तेमाल होगा. सबके पीछे वायरस से सुरक्षा है. मंचन स्ठल पर पात्रों के साथ चुंनिंद लोग होंगे वो भी कोविड़ केयर के संसाधनों से लैस. मंचल भी डिजिटली प्रसारित होगा और दर्शक भी चुनिंदा ही पहुंचेंगे. बाली का किरदार निभाने वाले सतीश दुबे की मानें तो छिंदवाड़ा की प्राचीन रामलीला 1889 में शुरु हुई थी. उस समय के लोगों ने एक वटवृक्ष लगाया था. उसके बाद लगातार भगवान राम की लीलाओं का मंचन करते चले आ रहे हैं.
हमारे पूर्वजों ने लालटेन की रोशनी में रामलीला प्रारंभ की थी. उन्होंने बताया कि उस समय के संसाधन के हिसाब से कोयला, पीली मिट्टी, गेरू और चाक से रामलीला के पात्रों का मेकअप करते थे. लेकिन समय बदला है और आधुनिक मीडिया के युग में रंगमंच तक दर्शकों को लाना बड़ी चुनौती होती है, फिर भी वे इस दौर में लोगों को रंगमंच तक लाकर राम की लीला और उनके आदर्शों को परोसने का काम कर रहे हैं, ताकि लोग अपनी संस्कृति से जुड़े रहें : सतीश दुबे - अध्यक्ष रामलील मंडल