छिंदवाड़ा। हिंदु धर्म में देवउठनी एकादशी का खास महत्व है. कार्तिक माह की एकादशी तिथि को देवउठनी मनाई जाती है. इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है. 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी है. तुलसी विवाह साथ ही सनातन परंपरा के अनुसार सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है. तुलसी विवाह का अपना अलग महत्व है. इससे जुड़े कई लाभ हैं. देवउठनी एकादशी के नाम से भी इस पूजा की पहचान होती है. पढ़िए तुलसी विवाह की पूजा-विधी मुहूर्त और लाभ क्या है.
तुलसी विवाह के दिन तुलसी पर अर्पित ना करें जल: ज्योतिषाचार्य डॉक्टर वैभव आलोणी ने बताया कि देवउठनी एकादशी यानि की तुलसी विवाह के दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. खास बात यह है इस दिन तुलसी विवाह होता है. तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे पर जल अर्पित कर पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. अगर इस पूजा के दौरान किसी ने तुलसी पौधे में जल अर्पित किया तो माता का व्रत खंडित हो जाता है और व्रतधारी महिला पुरुषों को इसका फल नहीं मिलता है.
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त: इस बार देवउठनी एकादशी दो दिन मनाई जाएगी. 22 नवंबर को रात 11 बजकर 3 मिनट पर एकादशी तिथि प्रारंभ होगी. जो 23 नवंबर को रात 9 बजे समाप्त होगा. इस दिन शाम को 6 बजकर 50 मिनट पर पूजा का समय है. जो 8 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगा. वहीं कई लोग एकादशी द्वादशी के दिन भी मनाते हैं. इस साल 23 नवंबर को रात 9 बजकर 1 मिनट से 24 नवंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट पर समाप्त होगा. शाम 5 बजकर 25 मिनट से शाम 6 बजकर 4 मिनट पर प्रदोष काल शुभ मुहूर्त बन रहा है.
शयनमुद्रा से उठते हैं भगवान शुभ कामों की होगी शुरुआत: गणेश मठ बिछुआ के ज्योतिषाचार्य डॉ वैभव अलौणी ने बताया कि भगवान देवशयनी एकादशी के बाद शयनमुद्रा में चले जाते हैं. जिसके बाद सभी शुभ मांगलिक काम वर्जित होते हैं. देव उठनी एकादशी तुलसी विवाह के दिन भगवान शयनमुद्रा से जागते हैं और शुभ कामों की शुरुआत होती है.