छतरपुर। खजुराहो में चल रहे अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रंग-बिरंगी वेशभूषा में ढिमरयाई लोकगीत पर नृत्य प्रस्तुति दी गई. ऐसा पहली बार हुआ है जब बुंदेलखंड के लोकगीत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया गया हो. इस नृत्य को 20 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया.
खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में ढिमरयाई लोकगीत ने बांधा समां, झूम उठे दर्शक
खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में ढिमरयाई लोकगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी गई. इस दौरान तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सदन गूंज उठा.
बता दें की ढिमरयाई लोकगीत रैकवार समाज विशेष खुशी के मौके पर गाता है और नृत्य करता है. यह गीत दर्शाता है कि रैकवार समाज जब मछलियों को पकड़ने जाते हैं तो कितने खुश होते हैं. साथ ही इस गाने में रैकवार समाज का परिवेश, वेशभूषा और समाज के प्रति उनके संदेश भी है कि समाज अपने काम में किस तरह से आनंद ढूंढ लेता है.
लगभग 20 मिनट तक चले लोकगीत को लोगों ने बांधकर रखा, प्रस्तुति के दौरान लोगों ने जमकर तालियां बजाई. इस लोकगीत पर नृत्य की प्रस्तुति स्वर्ण बुंदेल ग्रुप के द्वारा दी गई. ग्रुप के सदस्य सचिन सिंह परिहार बताते हैं कि ढिमरयाई रैकवार समाज द्वारा बुंदेलखंड का गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत और नृत्य है, जो कि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं.