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MP: आदिवासी सीटों पर बदला-बदला सा है सियासी गणित, बीजेपी के विजय रथ पर विराम लगा पाएगी कांग्रेस?

जिन छह आदिवासी सीटों को जीतने के लिये बीजेपी-कांग्रेस ने खास रणनीति बनाई है, उनमें से एक कांग्रेस के पास है, जबकि बीजेपी का पांच सीटों पर कब्जा है. पांच सीटें बीजेपी के कब्जे में होने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल उसके पक्ष में नहीं है.

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Published : Apr 1, 2019, 3:34 PM IST

कमलनाथ, राकेश सिंह, कांतिलाल भूरिया, फग्गन सिंह कुलस्ते

भोपाल। चुनावी सरगर्मी के बीच मध्यप्रदेश की कुछ सीटों पर स्सपेंस बरकरार है. भोपाल-इंदौर के अलावा रिजर्व सीटों पर भी राजनीतिक दल जीत के लिये खास रणनीति के तहत तैयारी में जुटे हैं. एमपी की छह ऐसी आदिवासी सीटें हैं, जिन पर इस बार रोचक मुकाबला होने वाला है.

जिन छह आदिवासी सीटों को जीतने के लिये बीजेपी-कांग्रेस ने खास रणनीति बनाई है, उनमें से एक कांग्रेस के पास है, जबकि बीजेपी का पांच सीटों पर कब्जा है. पांच सीटें बीजेपी के कब्जे में होने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल उसके पक्ष में नहीं है. वहीं पंद्रह साल बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर मजबूत मानी जा रही है.

रतलाम सांसद कांतिलाल भूरिया

माना जा रहा है कि 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव के बाद से इन सीटों के समीकरण बहुत बदल चुके हैं. इन सीटों में से कुछ पर प्रत्याशियों का ऐलान हो चुका है तो कुछ पर सस्पेंस है. शहडोल, मंडला, बैतूल, खरगोन, धार, रतलाम छहों आदिवासी बहुल सीटों पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रोचक समीकरण हैं.

शहडोल लोकसभा सीट- शहडोल लोकसभा सीट फिलहाल बीजेपी के कब्जे में है. यहां से ज्ञान सिंह सांसद हैं, जिनका टिकट काट दिया गया है. उनकी जगह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं हिमाद्री सिंह पर बीजेपी ने दांव खेला है. साल 2016 में हुये उपचुनाव में ज्ञान सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो इस बार यहां रोचक मुकाबला हो सकता है. शहडोल लोकसभा सीट के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से चार सीटें बीजेपी के खाते में हैं, जबकि चार पर कांग्रेस का कब्जा है. इसके साथ ही टिकट कटने से बागी हुए वर्तमान सांसद ज्ञान सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है जो कि तीन बार यहां से बीजेपी सांसद रह चुके हैं. हालांकि बीजेपी संगठन उन्हें मनाने की कोशिशों में लगा है. लेकिन, ज्ञान सिंह फैक्टर प्रभावी न हो तो बीजेपी प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को कांग्रेस की अपेक्षा मजबूत माना जा रहा है.

मंडला लोकसभा सीट- पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं. इस बार भी पार्टी ने उनको मैदान में उतारा है, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नजर नहीं आ रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के परिणामों के लिहाज से मंडला लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि बीजेपी बमुश्किल दो सीटें ही जीत सकी थी. इसके साथ ही इलाके के लोगों में भी कुलस्ते के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है जो उनकी राह में रोड़ा बन सकती है.

बैतूल लोकसभा सीट-यहां से दो बार से सांसद चुनीं जा रहीं ज्योति धुर्वे का पार्टी ने टिकट काट दिया है. उनकी जगह बीजेपी ने दुर्गादास उईके पर दांव खेला है. धुर्वे, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के कारण मुश्किलों में फंसी हुई हैं. उनकी टिकट कटने की वजहों में से फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला भी माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस ने यहां से रामू तेकाम को मौदान में उतारा है. यहां भी बीजेपी-कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है. विधानसभा चुनाव के परिणाम के हिसाब से बैतूल लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी 4-4 सीटें हासिल कर बराबरी की स्थिति में है.

खरगोन लोकसभा सीट- इस सीट पर बीजेपी का दबदबा है. पिछली बार यहां से बीजेपी के सुभाष पटेल लोकसभा पहुंचे थे. उन्होंने कांग्रेस के रमेश पटेल को शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार बीजेपी की राह यहां आसान नहीं है. खरगोन संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें आती हैं, जिनमें से बीजेपी के पास केवल एक और एक सीट निर्दलीय के खाते में है, जबकि छह सीटों पर कांग्रेस विधायक हैं. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के ये आंकड़े कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले 21 ही साबित कर रहे हैं.

धार लोकसभा सीट- धार लोकसभा सीट पर बीजेपी का लंबे समय से कब्जा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघार को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजे यहां के मतदाताओं के रुझान में बदलाव दिखाने वाले महसूस हो रहे हैं. विधानसभा चुनाव में यहां की आठ सीटों में से छह पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी दो ही सीटें जीत सकी थी. हालांकि इस सीट पर अब तक दोनों दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन यहां रोचक मुकाबले का अनुमान लगाया जा रहा है.

रतलाम लोकसभा सीट- प्रदेश की आदिवासी सीटों में से रतलाम ही एक ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस का कब्जा है. यहां साल 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया सांसद हैं. उपचुनाव में बीजेपी ने दिलीप सिंह भूरिया की पत्नी निर्मला भूरिया को मैदान में उतारा था, जिन्हें हार का सामना करना पड़ा. विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिहाज से देखें तो रतलाम संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि तीन सीटें बीजेपी के पास हैं. ऐसे में यहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है.

कांग्रेस के झूठ बनाम बीजेपी के झूठ की लड़ाई
इस बार प्रदेश की 29 सीटों पर चार चरणों में मतदान होना है. इसके लिये दोनों दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार की है. जहां एक ओर बीजेपी प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का दावा करती है तो वहीं पिछले चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा सीटें लाने की बात कह रही है. बीजेपी का कहना है कि जनता पीएम मोदी के साथ है क्योंकि कांग्रेस ने झूठे वचन देकर प्रदेश में सरकार बनाई है. इसके जवाब में कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया दावा करते हैं कि पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है, क्योंकि पीएम मोदी ने जनता से जो झूठ बोला है, उसे जनता समझ चुकी है और जनता इस बार कांग्रेस के साथ है.

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