MP उपचुनाव: बिकाऊ के आरोपों से घिरी सुमित्रा को फिर मिलेगा मौका या टिकाऊ साबित होंगे रामकिशन
मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है. जिन 28 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, उनमें बुरहानपुर की नेपानगर विधानसभा सीट भी शामिल है. नेपानगर में इस बार बीजेपी-कांग्रेस के लिए कठिन परीक्षा है. जानें क्या हैं वहां के चुनावी मुद्दे...
बिकाऊ v/s टिकाऊ
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Published : Oct 29, 2020, 12:33 PM IST
बुरहानपुर। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों में उपचुनाव का शंखनाद हो चुका है. उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है, और जोर-शोर से अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं. इन 28 विधानसभा सीटों में बुरहानपुर की नेपानगर विधानसभा सीट भी शामिल है, जहां प्रजातंत्र के महायज्ञ में 11 बार आहुतियां डालने के बाद 12वीं बार अब उपचुनाव की हवन वेदी तैयार है, लेकिन मतदाताओं का मूड इस बार राजनीतिक जानकार भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. आखिर क्या हैं जनता के मुद्दें और क्या है सीट का इतिहास, पढ़ें पूरी ख़बर...
बिकाऊ v/s टिकाऊ
बीजेपी-कांग्रेस के लिए कठिन परीक्षा
नेपानगर के चुनावी दंगल में जहां बीजेपी ने कांग्रेस से पार्टी में शामिल हुई सुमित्रादेवी कास्डेकर को प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने रामकिशन पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है. ऐसे में कांग्रेस जहां बीजेपी में शामिल हुए विधायकों को बिकाऊ करार देते हुए निशाना साध रही है और जनता से कह रही है कि 'बिकाऊ नहीं टिकाऊ चाहिए', वहीं बीजेपी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कह रही है कि 15 महीने की सरकार के कार्यकाल में कांग्रेस ने कोई काम नहीं किया. यहां तक की संकल्प पत्रों में की गई घोषणाओं पर भी अमल नहीं किया. ऐसे में लअब नेपानगर में दोनों ही पार्टियों के चुनावी दंगल में कड़ा मुकाबला हो गया है.
नेपा कागज मिल बंद होने के कारण सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. वहीं क्षेत्र में अन्य कोई उद्योग-धंधे भी नहीं हैं. ऐसे में लोगों की आजीविका का साधन खेती, मजदूरी और वनोपज ही है. पढ़े-लिखे आदिवासी युवा अब यहां रोजगार के अवसर चाहते हैं.
सिविल सर्जन अस्पताल
नेपानगर में बुराहनपुर की तर्ज पर सिविल सर्जन अस्पताल बनाए जाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हमारे क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अगर एक अस्पताल नहीं बनवा सकते हैं, तो फिर वे कुछ नहीं कर सकते. क्योंकि नेपानगर और आस-पास के लोगों को इलाज के लिए बुरहानपुर और दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता है. इसलिए जरुरी है कि नेपानगर में एक सिविल सर्जन अस्पताल बनाया जाए. ताकि क्षेत्र में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाए मिल सके.
नेपानगर विधानसभा
रोजगार और पानी बड़ा मुद्दा
स्थानीय लोगों का कहना है कि नेपानगर में रोजगार और पानी की पर्याप्त सुविधाएं आज तक नहीं मिल सकी हैं. नेपा फर्म बंद होने से स्थानीय युवा बेरोजगार हैं. इसलिए जरुरी है कि यहां रोजगार के साधन मुहैया कराने के लिए कुछ जरुरी योजनाएं और प्रोजेक्ट लाए जाए. जबकि नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों में पानी की कमी भी एक बड़ी समस्या है. इसलिए पानी भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना जनप्रतिनिधियों का पहला काम होना चाहिए.
किसान कर्ज माफी
क्षेत्र में ज्यादातर किसानों का 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ नहीं हो पाया है, जिस कारण किसानों में काफी नाराजगी है.
इसके साथ ही नेपानगर में फायर वाहन नहीं होने और सड़क, बिजली, पानी, कृषि उपज मंडी की मांग जैसे कई मुद्दे इस उपचुनाव में हैं. 2018 में हुए चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से विधायक सुमित्रादेवी कास्डेकर ने नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के गांवों में जरूरी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने का वादा किया था, लेकिन अधिकांश वादे पूरे नहीं कर पाईं.
कोरकू समाज के बनाए गए हैं प्रत्याशी
नेपानगर विधानसभा सीट पर शुरुआत से ही कोरकू जाति का प्रभाव रहा है. लिहाजा बृज मोहन मिश्र और तनवंत सिंह कीर के बाद से बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों ने इसी जाति के प्रत्याशी को चुनना शुरू कर दिया था. इस बार भी दोनों दलों ने कोरकू समाज से ही प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं. इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी सुमित्रा कास्डेकर कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुई हैं. उनकी वजह से ही उपचुनाव के हालात बनने के कारण क्षेत्र के मतदाताओं में गहरा आक्रोश है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी रामकिशन पटेल को लेकर भी पार्टी नेताओं के बीच विरोध है. दोनों दलों की सभाओं में कार्यकर्ता और मतदाता नजर तो आ रहे हैं, लेकिन स्पष्ट तौर पर उनका रुझान समझ नहीं आ रहा है।
कांग्रेस का बिकाऊ नहीं टिकाऊ पोस्टर
नेपानगर का चुनावी इतिहास
इस सीट पर पहली बार 1977 में चुनाव हुआ था, जिसमें जनता पार्टी के उम्मीदवार बृजमोहन मिश्र ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर जीत दर्ज कराई थी. उन्हें प्रदेश में वन मंत्री भी बनाया गया था.
1977 के बाद 1980 और 1985 में कांग्रेस के तनवंत सिंह कीर लगातार यहां से जीते. उन्हें प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य और नगरीय प्रशासन मंत्री की जिम्मेदारी मिली.
1990 में फिर बीजेपी के बृजमोहन मिश्र जीते और विधानसभा अध्यक्ष बने.
1993 में फिर कांग्रेस की झोली में सीट आई और तनवंत सिंह कीर को फिर नगरीय प्रशासन मंत्री बनाया गया.
साल 1998 में कांग्रेस के टिकट से रघुनाथ चौधरी ने फिर जीत दर्ज की, लेकिन वे मंत्री नहीं बन सके.
बीजेपी की जनसभा
इसके बाद साल 2003 में बीजेपी की टिकट से जीती अर्चना चिटनीस को पशुपालन मंत्री बनाया गया.
2008 और 2013 में दो बार लगातार बीजेपी के राजेंद्र दादू जीते. इस दौरान सरकार बीजेपी की रही, लेकिन वे मंत्री नहीं बन पाए.
2016 में सड़क दुर्घटना के दौरान राजेंद्र दादू की मौत के बाद उपचुनाव हुए जिसमें उनकी बेटी मंजू दादू ने जीत हासिल की.
2018 के चुनाव में कांग्रेस की सुमित्रादेवी कास्डेकर ने करीब 1,264 वोटों के अंतर से बीजेपी की मंजू दादू को परास्त कर जीत अपने नाम कर ली.
नेपानगर उपचुनाव के चुनावी मैदान में कुल 6 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं. इसमें मुख्य टक्कर कांग्रेस-बीजेपी के बीच है. लेकिन बाकी प्रत्याशी का समीकरण भी खेल बिगाड़ सकता है.
कांग्रेस की की जनसभा
जातिगत समीकरण
नेपानगर विधानसभा क्षेत्र में यदि जातिगत समीकरणों की बात की जाए, तो इस आदिवासी सीट में कोरकू, बारेला और भिलाला आदिवासी सबसे ज्यादा हैं.
कोरकू-20 फीसदी
बारेला- 15 फीसदी
भिलाला- 15 फीसदी
भील जाति- 10 फीसदी
मराठा- 15 फीसदी
गुर्जर- 15 फीसदी
अल्पसंख्यक- 10 फीसदी
यही वजह है कि अब तक के चुनाव में इस सीट से अधिकांश कोरकू समाज का प्रत्याशी ही जीतता आया है.
मतदाताओं की संख्या
इस सीट में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 41 हजार 141 है.
कुल मतदाता-2 लाख 41 हजार 141
पुरुष-1 लाख 23 हजार 596
महिला-1 लाख 17 हजार 540
थर्ड जेंडर-5
दिव्यांग और 80 साल के मतदाता-करीब 600 से 700 मतदाता, जिन्हें चुनाव आयोग ने पोस्टल बैलट से मतदान की सुविधा भी उपलब्ध कराई है. वे चाहे तो मतदान केंद्र में जाकर ईवीएम मशीन से भी वोटिंग कर सकते हैं, या तो फिर डाक मतपत्र के जरिए भी वोट कर सकते हैं.