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एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज, आखिर क्या है इसके पीछे का सियासी राज ?

भारतीय जनता पार्टी की फायर ब्रांड नेत्री और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती लंबे समय बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय नजर आ रही हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उन्होंने मंच साझा कर इस बात के भी संकेत दिए हैं. उमा की एक दशक बाद एमपी की सियासत में वापसी और शिवराज के साथ जुगलबंदी कई नेताओं के लिए खतरा भी है. आखिर शिवराज के साथ आने के पीछे का क्या है राज... पढ़िए पूरी खबर..

एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज
एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज

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Published : Sep 19, 2020, 2:23 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के जरिए पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की राज्य की सियासत में वापसी के आसार बनने लगे हैं. लंबे समय बाद उनकी एक बार फिर राज्य में सक्रियता बढ़ी है. बीजेपी की चुनावी मंच पर भी नजर आने लगी हैं. मध्यप्रदेश में अब 29 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव होने हैं और बीजेपी की कोशिश है कि इन उपचुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की जाएं. इसके लिए वह हर रणनीति पर काम कर रही हैं. इसी के चलते बीजेपी ने अब पूर्व सीएम में भारतीय कि राज्य में सियासी हैसियत का लाभ उठाने की दिशा में कदम बढ़ाना भी शुरू कर दिया है.

एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज

यही नहीं अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उमा भारती की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं तो वहीं उमा भारती भी शिवराज की तारीफ करते नहीं थक रहीं. उमा भारती और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ में प्रचार प्रसार को लेकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि उमा भारती देश-प्रदेश की लोकप्रिय नेता हैं और संगठन के तय कार्यक्रम के अनुसार वह प्रचार प्रसार कर रही हैं और उमा भारती ही वह नेता हैं जिन्होंने 2003 में बंटाधार की सरकार को मध्यप्रदेश से उखाड़ फेंका था.

एक दशक बाद उमा के साथ शिवराज

बड़ामलहरा सीट से लड़ सकती हैं उपचुनाव

उपचुनाव में पिछड़ा वर्ग की एक बड़ी भूमिका है. पिछड़ा वर्ग के मतदाता नतीजों को बदलने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. उमा भारती पिछड़ा वर्ग की एक बड़ा चेहरा हैं. शायद यही वजह है कि पार्टी इसका लाभ लेना चाहती है और उन्हें राज्य में सक्रिय किया जा रहा है. सियासी तौर पर तो चर्चा यहां तक भी है कि उमा भारती बड़ा मलहरा विधानसभा से चुनाव भी लड़ सकती हैं, क्योंकि उमा भारती के करीबी पूर्व विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था और बीजेपी में शामिल होने के बाद ही उन्हें उसका इनाम भी दे दिया गया.

उपचुनाव के सहारे वापसी

क्या खत्म हो गए मतभेद?

मौजूदा समय में जिस तरीके से शिवराज सिंह चौहान उमा भारती के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं, ये इस बात के भी संकेत हैं कि बीते एक दशक से कम ही ऐसे अवसर आए हैं, जो शिवराज और उमा एक साथ चुनाव प्रचार में मंच साझा करते नजर आए हों, मगर अब दोनों की नजदीकी बढ़ी और चुनावी सभाओं में दोनों नेताओं ने एक दूसरे की जमकर तारीफ कर ये साफ कर दिया है कि उनके बीच कोई मतभेद नहीं हैं.

बड़ामलहरा सीट से लड़ सकती हैं उपचुनाव

क्या कहती है कांग्रेस

उमा और शिवराज की जोड़ी को लेकर कांग्रेस का कहना है कि ग्वालियर चंबल में जिस तरीके से सिंधिया का विरोध हो रहा है और उन्हें गद्दार करार दिया जा रहा है. शायद यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी अब उमा भारती के सहारे अपनी नैया पार करने की कोशिश में है.

दिग्विजय सरकार की विदाई में था अहम योगदान

राजनीतिक जानकारों की नजर में उमा भारती

उमा भारती और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजदीकियों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक से शिव अनुराग पटेरिया का कहना है कि ये चौंकाने वाली बात नहीं है. उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान जानते हैं कि संगठन जिंदा रहेगा तो आने वाले रास्ते आसान होते जाएंगे. प्रदेश में 28 सीटों पर विधानसभा के चुनाव होने हैं. इन क्षेत्रों में अगर आपको जीत हासिल करना है तो दोनों कद्दावर नेताओं को एक साथ चलना होगा, क्योंकि कांग्रेस में एकला चलो की तर्ज पर कमलनाथ चल रहे हैं और बीजेपी में उमा भारती और शिवराज एक साथ कदम मिलाकर चल रहे हैं. इसका लाभ चुनाव में भी मिलेगा और चुनाव के बाद बनने वाले समीकरणों में भी मिलेगा.

उपचुनाव के सहारे वापसी

उमा भारती के मध्य प्रदेश से विदाई के बाद उत्तर प्रदेश के सांसद विधायक बनने के बाद मध्यप्रदेश के कुछ चेहरों को ये लगने लगा था कि उनकी जगह को ऑक्यूपाई कर लेंगे, लेकिन ऐसा अब संभव दिखाई नहीं देता है कि वह उस जगह को ऑक्युपाई कर लेंगे. उमा भारती ने जिस तरीके से मध्यप्रदेश में अपनी सक्रियता का विस्तार किया है, उसका संकेत साफ है कि वो आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में अंगद के पांव की तरह जम सकती है, क्योंकि मध्य प्रदेश मध्य विधानसभा के जिन सीटों पर उप चुनाव होना है वहां पर उमा भारती का अपना वर्चस्व है.

दिग्विजय सरकार की विदाई में था अहम योगदान

2003 में दिग्विजय सिंह सरकार की विदाई के बाद उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं. हुबली विवाद के चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा था, जिसके बाद से उनकी मध्य प्रदेश की राजनीति से दूरियां बढ़ गई थीं. यही नहीं उन्होंने अपना मुख्यालय भी उत्तर प्रदेश बना लिया था, जहां से वह झांसी सीट से लोकसभा सदस्य रहीं और केंद्रीय मंत्री भी. पिछले कुछ समय से उमा भारती मध्य प्रदेश में डेरा जमाए हुए हैं और अब उपचुनाव में उनकी सक्रियता आने वाले समय में एक नई तस्वीर बनाने जैसा नजर आ रही है.

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