भोपाल।भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हुए भीषण अग्निकांड में 10 नवजात शिशु झुलसकर मौत का शिकार हो गए थे. इस हादसे के बाद राज्य सरकार ने पूरे प्रदेश के अस्पतालों में फायर फायर ऑडिट के सख्त आदेश दिए थे. लेकिन ये भी हमेशा की भांति कांगजी आदेश साबित हुआ. हमीदिया के भीषण अग्निनकांड को अभी 9 माह भी नहीं बीते कि जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भीषण अग्निकांड हो गया. इस हादसे में भी 8 लोग मौत का शिकार हो गए. 17 से ज्यादा मरीज गंभीर हैं. बीते तीन साल के अंदर मध्यप्रदेश के 12 से ज्यादा अस्पतालों में आगजनी के हादसे हो चुके हैं. इन हादसों में कई लोग मौत का शिकार हो चुके हैं. इनमें सरकारी के अलावा निजी अस्पताल भी हैं. इसके बाद भी ऐसे हादसे रोकने के लिए राज्य सरकार कोई ठोस उपाय तो करना दूर, फायर विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन कराने में अक्षम साबित हो रही है.
हमीदिया अस्पताल में 12 नवजात झुलसकर मरे :9 नवंबर 2021 को हमीदिया कैंपस के कमला नेहरू हॉस्पिटल में लगी आग ने कई घरों के चिराग बुझा दिए थे. इस आग की लपटों ने कई घरों में अंधेरा कर दिया. 12 नवजात मौत का शिकार हुए. नवजात इतने झुलस गए थे कि उनकी शिनाख्त भी ढंग से नहीं हो सकी थी. उस समय पीड़ित परिजनों की व्यथा को भी दरकिनार कर दिया गया था. परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन बच्चों के गुम होने के आरोप भी लगाए थे. इस दौरान दुखद बात यह रही कि अस्पताल प्रबंधन इन मौतों को सामान्य घोषित करने में लगा रहा. यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस भीषण हादसे से पहले 7 अक्टूबर 2021 को हमीदिया अस्पताल की निर्माणाधीन बिल्डिंग में आग लगी थी. आग का धुआं दूर से ही दिखाई दे रहा था. फायर ब्रिगेड की टीम ने एक घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया था. इसके बाद भी हमीदिया अस्पताल प्रशासन ने ऐहितयायत नहीं बरती.
हादसे के बाद सारे आदेश हवाहवाई साबित हुए :कमला नेहरू अस्पताल में आग लगने और बच्चों के मरने के बाद सरकार ने तीन अफसरों को पद से हटा दिया, जबकि एक को निलंबित किया था. सीएम शिवराज ने कहा था कि इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा. उच्च स्तरीय बैठक में सीएम ने निर्देश दिए. बैठक में निर्णय लिया गया कि अब मेडिकल एजुकेशन विभाग का अपना अलग सिविल विंग होगा, जो मेडिकल कॉलेज और उससे संबंधित अस्पताल का मेंटीनेंस करेगा. बैठक में तय किया गया कि अभी तक यह काम सीपीए द्वारा किया जा रहा था. घटना के बाद तत्काल प्रभाव से मेंटीनेंस का काम सीपीए से वापस लेकर पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया. मंत्री विश्वास सारंग कहा था कि फिलहाल पीडब्ल्यूडी को यह काम अस्थाई तौर पर दिया गया है. सिविल विंग के गठन के साथ यह पूरा काम उसे सौंप दिया जाएगा. लेकिन ये आदेश भी कागजी साबित हुआ. जैसे ही कुछ दिन बीते पूरा मामला ठंडा पड़ गया.
अस्पतालों में सालों से नहीं हुआ ऑडिट :हमीदिया अस्पताल के कमला नेहरू अस्पताल में लगी आग के बाद यहां लगे फायर सेफ्टी सिस्टम को लेकर लगातार सवाल उठते रहे. 15 साल से अधिक समय से यहां पर फायर ऑडिट नहीं हो पाया. अस्पताल में आग बुझाने के उपकरण तो रखे हैं, लेकिन यह किसी शोपीस से कम नहीं हैं. क्योंकि यह उपकरण काम नहीं करते हैं. संभाग आयुक्त ने हादसे के बाद कहा कि जांच के लिए कमेटी गठित हो गई है, लेकिन फायर ऑडिट नहीं होने की जिम्मेदारी कौन लेगा? इससे भी बुरा हाल प्रदेश के अस्पतालों में हैं.
ऑडिट के बारे में कलेक्टरों से पूछा तक नहीं :हमीदिया में भीषण अग्निकांड के बाद राज्य शासन ने प्रदेश भर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के फायर सेफ्टी ऑडिट के निर्देश दिए थे. बैठक में मुख्यमंत्री ने ऑडिट की जिम्मेदारी जिला स्तर पर कलेक्टर को सौंपी थी. आदेश दिया गया था कि कलेक्टर अगले 10 दिनों में जिले के सभी सरकारी, निजी और मेडिकल कॉलेजों का फायर ऑडिट कराकर इसकी रिपोर्ट शासन को सौंपेंगे. लेकिन आज तक इस आदेश पर रत्तीभर काम नहीं हुआ. न जिलों के कलेक्टर्स ने कोई कदम उठाया और न ही जिम्मेदारों ने इसकी कोई प्रोगेस रिपोर्ट ली.
अशोकनगर जिला अस्पताल में आग, 14 नवजात थे भर्ती :अशोकनगर के जिला अस्पताल के एसएनसीयू (SNCU) में 16 मई 2021 को शार्ट सर्किट के कारण आग लगी. इससे अस्पताल में हाहाकार मच गया. आग लगने के कारण अस्पताल से तेज धमाके की आवाजें सुनाई दीं और तेज धुआं उठने लगा. अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती 14 नवजातों को स्टाफ नर्स ने आग लगने के तुरंत बाद वहां से शिफ्ट कर लिया, जिससे किसी भी नवजात को नुकसान नहीं पहुंचा है. वहीं, अस्पताल के कर्मियों और इलेक्ट्रीशियनों ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया है. यहां इसके बाद भी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए.