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नर्मदा परिक्रमा के दो साल पूरे होने पर दिग्विजय सिंह ने जताया समर्थकों का आभार - bhopal news

साल 2018 में अपनी पत्नी अमृता सिंह के साथ दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा शुरू की थी, जो आज के ही दिन पूरी हुई थी. दो साल पूरे होने पर दिग्विजय ने लोगों का आभार जताया है.

Digvijay Singh and Amrita Singh
आज ही के दिन 6 महिने में दिग्विजय सिंह और अमृता सिंह ने पूरी की थी नर्मदा परिक्रमा

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Published : Apr 10, 2020, 8:04 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता सिंह ने आज ही के दिन नर्मदा परिक्रमा पूरी की गई थी, दोनों ने साल 2018 में नर्मदा परिक्रमा शुरू की थी. परिक्रमा के दौरान दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता सिंह का आदिवासी समुदाय से गहरा लगाव भी हो गया था, यही वजह है कि, वो जब भी समय मिलता है उन लोगों से मिलने के लिए जरूर जाते हैं.

नर्मदा परिक्रमा के अनुभवों को दिग्विजय ने किया साझा

इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि, आध्यात्म के वास्तविक स्वरूप की झांकियां सिर्फ नर्मदा पथ पर ही देखी जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि, हमने 6 माह में जो देखा, महसूस किया और जिया वो हमारे जीवन की अनमोल धरोहर है. तीन हजार किलोमीटर से अधिक की इस धर्म परिक्रमा में हम लगभग 300 परिक्रमावासी थे. दिग्विजय सिंह ने कहा कि, नर्मदा पथ के कांटों और पत्थरों, जंगलों और झाड़ियों, कीचड़ और रेत, बारिश, सर्दी और गर्मी को हम कदापि बर्दाश्त नहीं कर पाते, यदि नर्मदा माता का आशीर्वाद हम सभी लोगों के साथ नहीं होता.

मध्य प्रदेश में 15 महीने की सरकार पर बोले दिग्गी

उन्होंने कहा कि, मध्य प्रदेश में भले ही कांग्रेस की सरकार 15 महीने की रही हो, लेकिन इस 15 महाने के दौरान सरकार ने बेहतरीन काम किया है और कई बेहतर योजनाएं भी प्रदेश के विकास के लिए बनाई हैं. उन्होंने कहा कि, नर्मदा परिक्रमा के समय जो वचन हमने दिया था, उसे शत-प्रतिशत पूरा किया है. नर्मदा के लिए और भी जो बेहतर हो सकता है, वो हम आगे भी करते रहेंगे.

नर्मदा परिक्रमा पर बोलीं अमृता सिंह

अमृता सिंह ने कहा कि, 'नर्मदा परिक्रमा हमारे लिए सिर्फ एक भौतिक परिक्रमा नहीं थी, ये हमारे जीवन को एक नई दिशा देने का पराक्रम भी था. इस परिक्रमा ने हमें न सिर्फ विषम परिस्थितियों में जीना सिखाया, बल्कि लोगों ने हमारा आतिथ्य करके हमे अतिथि सत्कार भी सिखाया. नर्मदा के किनारे तपस्यारत साधुओं ने हमें अपने आश्रमों में आश्रय और भोजन देकर सिखाया कि, धर्म और सेवा का कोई मोल नहीं होता है.

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