भोपाल। मध्य प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति अब आदिवासियों की ओर मुड़ गई है. उपचुनाव में आदिवासी बाहुल्य सीट पर मिली जीत के बाद भाजपा आदिवासियों को जहां अपनी ओर करने की कोशिश में लग गई है, वहीं कांग्रेस भी अपने परंपरागत वोटर रहे आदिवासियों को फिर से अपने में जोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
वजह ये है कि राज्य में 43 समूहों वाली आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासियों ने बड़ा झटका दिया था. उसके बाद भाजपा इसकी भरपाई करने में जुट गई है. दोनों ही दल आदिवासी वोट बैंक के सहारे 2023 के विधानसभा और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की नाव को पार लगाना चाहते हैं.
आदिवासी वोट बैंक पर है नजर
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर भाजपा के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे. शाह के बाद अब 15 नवंबर को पीएम मोदी के दौरे को भी आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश में देखा जा रहा है।.
बोकिल ने कहा कि भाजपा सरकार ने हाल ही में आदिवासियों के लिए पेसा कानून लागू कर उनके अधिकारों को और मजबूत करने की दिशा में काम किया है. वहीं कांग्रेस भी लगातार आदिवासी अधिकार यात्रा के बाद अब जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन करने जा रही है. इसके जरिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ आदिवासी वोट बैंक को अपनी तरफ करने की कोशिश में लगे हैं.
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सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स
राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार सजी थॉमस का कहना है कि भाजपा इन दिनों सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स कर रही है. पहले भाजपा ने ओबीसी आरक्षण को लेकर मुद्दा बनाया और इसी के तहत उपचुनाव में भी सामान्य सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा गया, जिसमें उसे सफलता भी मिली.