भोपाल। दिग्विजय सिंह चुनाव मैदान में बतौर उम्मीदवार भले नहीं थे लेकिन ये चुनाव दिग्विजय सिंह की सियासत,संगठन क्षमता और कांग्रेस में जमीनी कार्यकर्ता पर उनकी मजबूत पकड़ का लिटमस टेस्ट भी है. होम फ्रंट पर दिग्विजय सिंह की पारी कितनी मजबूत या कमजोर है नतीजों के साथ ये तस्वीर भी साफ होगी. कितने दिग्विजय समर्थक चुनाव जीतते हैं जिनकी मुहर पर उन्हें टिकट मिली थी. उनकी जीत हार से केवल इन उम्मीदवारों की जीत हार नहीं दिग्विजय की सियासत भी तय होगी.नतीजों पर टिका है सवाल क्या ये उनक लिए लिटमस टेस्ट है.
दिग्विजय की साख दांव पर: पिछले चुनाव में कांग्रेस की कम मार्जिन से हारी हुई 66 सीटों का जनादेश बदलने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह को दी गई थी. उन्होंने चुनाव से काफी पहले से इन सीटों के लिए मेहनत शुरू कर दी थी. यहां कार्यकर्ताओं की बैठकों के साथ असंतुष्टों के बागी नहीं बनने और मैदान में नहीं उतरने को लेकर शपथ तक दिलाई. दिग्विजय सिंह के इन सीटों पर अपनाए गए सारे फार्मूले कितने कारगर रहे ये नतीजा भी 230 सीटों के चुनाव नतीजों के साथ आएगा. ये पता चल पाएगा कि मजबूत संगठन क्षमता रखने वाले दिग्विजय सिंह आज भी पार्टी में क्या ऐसे सर्वमान्य नेता हैं कि जिनके कहने पर कार्यकर्ता जुटे और पार्टी का सीन बदल पाए.
किसके खाते में जाएगा क्रेडिट: इन 66 सीटों में से अगर 50 पर भी कांग्रेस बढ़त बना ले जाती है तो तय है कि इसका पूरा क्रेडिट दिग्विजय सिंह के खाते में ही जाएगा.साथ ही दिग्विजय को लेकर कांग्रेस में ये मान्यता मजबूत होगी कि वाकई संगठन पर मजबूती के लिए और चुनावी जमीन तैयार करने में दिग्विजय का कोई मुकाबला नहीं.