भोपाल।आजादी के 76 साल बाद भी देश की सरकारें शायद अपने सामाजिक न्याय के वायदे को नहीं पूरा कर सकीं हैं. यही वजह है कि आज भी समाज में आदिवासी और दलित अपनी जाति का दंश झेल रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस के दिन विदिशा में एक सरपंच स्कूल में झंडा इसलिए नहीं फहरा सका, क्योंकि वो दलित है. सत्तपक्ष और विपक्ष दोनों के लिए आज शायद दलित और आदिवसी सियासी मजबूरी बन कर रह गये हैं. इनके लिए वायदे तो बहुत किये दाते हैं लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां होती है.
एमपी में दलित सरपंच का अपमान:विदिशा जो कभी सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह का संसदीय क्षेत्र होता था, वहां आज भी दलित और आदिवासी अपने हक से महरूम हैं. ताजा मामला विदिशा के सिरोंज से है जहां स्वतंत्रता दिवस पर भगवन्तपुर ग्राम पंचायत के सरपंच को इसलिए तिरंगा नहीं फहराने दिया गया क्योंकि, वो दलित है. सरपंच बारेलाल अहिरवार का कहना है कि "स्कूल की मैडम मुझसे हरिजन होने के कारण चिढ़ती हैं. वो कहती हैं कि तुम दलित हो तुम क्या जानो. आज स्वतंत्रता दिवस पर मुझे स्कूल में नहीं बुलाया. मैडम ने किसी दूसरे व्यक्ति यानि कि जनपद सदस्य से तिरंगा फहरवाया. जबकि पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सरपंच को ही झंडा फहराने का अधिकार है."
कांग्रेस ने उठाये सवाल:कांग्रेस ने इस घटना पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया में लिखा कि-"दलित विरोधी शिवराज सरकार : शिवराज सरकार में स्वतंत्रता दिवस पर्व पर दलित सरपंच बारेलाल अहिरवार जी को झंडा वंदन कार्यक्रम में शामिल नहीं किया और झंडा फहराने से रोका गया. शिवराज जी, दलितों से इतनी नफरत करते हो..."