MP Borewell Rescue: काश...जमीन पर उतरता सीएम का ये आदेश, बोरवेल में गिरी सृष्टि को नहीं लड़नी पड़ती जिंदगी की जंग
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में बीते दिन एक ढाई साल की बच्ची खुले पड़े बोरवेल में गिर गई. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी बच्ची बाहर नहीं आ सकी है और रेस्क्यू कार्य जारी है. जबकि सीएम शिवराज ने पहले हुई घटनाओं के बाद सख्त निर्देश दिए थे कि कहीं पर बोरवेल खुले नहीं रहने चाहिए. सीएम के निर्देशों के बाद भी ऐसे न जानें कितने बोरवेल खुले पड़े हैं.
आदेशों की अनदेखी
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Published : Jun 7, 2023, 10:06 PM IST
भोपाल। सीएम शिवराज के चौहान के निर्देश के दो माह बाद फिर खुला बोरबेल मासूम के लिए काल बन गया. जिस बोरवेल में ढाई साल का बच्चा गिरा उसका खनन दो माह पहले ही कराया गया था, लेकिन पानी न निकलने के चलते उसे खुला छोड़ दिया गया था. जबकि ऐसे मामलों को लेकर ही सीएम ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए थे और संबंधितों पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे, लेकिन सीएम की यह सख्ती नीचे तक पहुंचती तो शायद इस तरह की घटना न घटती. इस तरह की घटनाओं के लिए बोरवेल खनन को लेकर सख्त नियम न होना भी बड़ी वजह है. प्रदेश में घरेलू और कृषि बोर बैल के खनन को लेकर कोई नियम ही नहीं है, इस वजह से लोग इनका खनन कराते हैं और पानी न निकलने पर इन्हें खुला छोड़ दिया जाता है.
इन घटनाओं से नहीं लिया सबक
6 जून - सीहोर जिले के ग्राम बडी मुंगावली में ढाई साल की बच्ची बोरवेल में गिरी। 14 मार्च - विदिशा जिले के लटेरी तहसील के खेरखेरी पठार गांव में कच्चे बोरवेल में गिरने से 7 साल के बच्चे की मौत 26 फरवरी - छतरपुर जिले के बिजावर थाना क्षेत्र के ग्राम ललगुवां पाली में तीन साल की बच्ची गिरी। रेस्क्यु करके बचाया गया.
बोरवेर के लिए कोई नियम नहीं: सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के मुताबिक कृषि और घरेलू बोरवेल के खनन के लिए किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं पड़ती. जबकि औद्योगिक और मल्टी यूनिट बिल्डिंग के लिए अनुमति जरूरी होती है. यही वजह से प्रदेश में खेतों और घरों में कितने बोरवेल का खनन हुआ. इसके कोई निश्चित आंकड़े ही प्रशासन के पास नहीं है. सबसे खतरनाक स्थिति तब हो रही है, जब पानी न निकलने पर इन बोरवेल को खुला छोड़ दिया जाता है. लोगों की यह लापरवाही मासूमों पर भारी पड़ रही है, जो इन बच्चों के लिए काल बन जाते हैं.
काश, यह कदम उठाए जाएं: एसडीआरएफ के अधिकारियों के मुताबिक ऐसे मामलों में लोगों की लापरवाही ही सामने आती है, जो ऐसे बोरवेल को खुला छोड़ देते हैं.
बोरवेल में पानी न निकलने पर इन्हें खुला छोड़ने के स्थान पर यह किसी के लिए जानलेवा बने, उससे पहले ही इन्हें मिट्टी और पत्थरों से भर देना चाहिए. या फिर इनके मुंह को किसी बडे़ पत्थर से बंद कर देना चाहिए.
बोरवेल में गिरने वाले बच्चों को बचाना किसी चुनौती से कम नहीं होता. अधिकांश मामलों में मासूम जिंदगी की जंग हार जाते हैं. ऐसे मामलों को लेकर 2010 में सुप्रीम कोर्ट भी सभी राज्यों को सुरक्षात्मक उपाए अपनाने के आदेश जारी कर चुकी है, लेकिन दुर्भाग्य है कि इस तरह की घटनाएं लगातार जारी हैं. सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष पांडे कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को बोरवेल खनन के लिए नियम बनाए जाने की जरूरत है. इससे इस तरह की घटनाएं रूकेंगी, साथ ही भू-जल का दोहन भी रूकेगा.
विधानसभा में भी उठ चुका मामला:प्रदेश में बोरवेल में बच्चों के गिरने का मामला पूर्व में विधानसभा में भी उठ चुका है. 14 मार्च को विदिशा जिले में 7 साल के बच्चे के बोरवेल में गिरने की घटना को लेकर कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना ने विधानसभा में उठाया था. उन्होंने ऐसी घटनाओं को लेकर शासन को जिम्मेदार ठहराया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार की लापरवाही के चलते इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं. सरकार घटनाओं से सबक नहीं ले रही.
कांग्रेस ने फिर उठाए सवाल: उधर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अब्बास हफीज इसे सरकार की लापरवाही बताते हैं. उनके मुताबिक कमलनाथ सरकार के समय पानी का अधिकार अधिनियम में बोरवेल खनन पर सख्ती के प्रावधान किए जा रहे थे, लेकिन बीजेपी ने सरकार में आते ही इसे खत्म कर दिया.