भोपाल।मजलूम का ये ख्वाब है बस एक कसौटी... मिलती रहे हर हाल में दो जून की रोटी...अब दो जून का मतलब आप ये ना निकाल लीजिए कि हम तारीख से 2 जून की बात कर रहे हैं. यहां बात दो जून की रोटी की हो रही है. जिसको दो जून की रोटी नसीब है. वो शख्स सही मायने में खुशनसीब है. तो आप फेसबुक पर दो जून को लेकर जोक्स पोस्ट करें और दो जून पर बने नए नए लतीफें पढ़ें. उसके पहले जान लें कि दो जून की रोटी मुहावरा बना कैसे. सोशल मीडिया से पहले ये किसकी जुबान पर आया. कहां की ईजाद है...कहां से आगे बढ़ पाया.
मजलूम का ये ख्वाब है बस एक कसौटी, मिलती रहे हर हाल में दो जून की रोटी, जानिए क्या है 2 जून की रोटी - Famous idiom on social media
आप अक्सर लोगों से सुनते होंगे की दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाए या दो जून की रोटी मुश्किल से मिलती है. ऐसी बातें और जोक्स सोशल मीडिया पर आए दिन देखने मिलते हैं, जिसे लेकर कई बार लोग दो जून को तारीख समझ लेते हैं, लेकिन ये कोई तारीख नहीं बल्कि एक मुहावरा है. पढ़िए दो जून की रोटी के बारे में...
अवध से आया है ये दो जून:जून का शाब्दिक अर्थ है समय. दो जून की रोटी मतलब दो वक्त की रोटी. मूल रुप से ये शब्द जून अवधी शब्द है. हिंदी के जानकार और आलोचक राम प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं दो जून की रोटी का शाब्दिक अर्थ है दो वक्त यानि दो समय की रोटी. जो लोग मेहनतकश होते हैं, उनकी ये ही ख्वाहिश होती है कि कम से कम दो जून की यानि दो वक्त सुबह और शाम की ही रोटी मिल जाए. त्रिपाठी कहते हैं, ये बेशक अवधि का शब्द है, लेकिन पश्चिम यूपी के साथ पूरे बुंदेलखंड मे भी इस्तेमाल होता रहा है. अब तो एक तरीके से ये मुहावरे में बदल चुका है. इतिहासकार और शायर सैयद खालिद गनी कहते हैं दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं जिनको..वो लोग भी जीने की दुआ मांग रहे हैं.
सोशल मीडिया पर ट्रेंड करती 2 जून की रोटी:वैसे तो ये शब्द कई बरसों से चलन में है, लेकिन सोशल मीडिया पर 2 जून की तारीख आते ही ये दो जून की रोटी ट्रेंड करने लगती है. कहा जाने लगता है कि रोटी दो जून की हो गई. यानि दो जून की रोटी को दिन में समेटा जाता है. अक्सर लिखा जाता है कि हमें तो आज दो जून की रोटी मिल गई. या हमें तो आज मिल गई दो जून की रोटी और आपको. हालांकि सोशल मीडिया पर भले दो जून को लेकर जोक्स बनाए जाएं और इसे लतीफो में लिया जाए, लेकिन एक मजबूर मजलूम से पूछिए तो दो जून की रोटी बहुत मायने रखती है.