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संकट में है एमपी के मासूम बच्चों का भविष्य, कभी आग तो कभी डॉक्टरों की लापरवाही से हो रहीं मौतें

हमीदिया अस्पताल कैम्पस के कमला नेहरू चिकित्सालय के पीडियाट्रिक्स वार्ड में आग लगने से चार नवजात बच्चों की मौत हो गई. यह कोई पहला मामला नहीं अब से पहले भी डॉक्टरों की लापरवाही और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से बच्चों की मौतें होती रही हैं.

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Published : Nov 9, 2021, 9:49 AM IST

भोपाल।प्रदेश की राजधानी के नामी अस्पताल में आग लगने से एक बार फिर मध्य प्रदेश चर्चाओं में आ गया है. हमीदिया अस्पताल कैम्पस (Hamidia Hospital Campus) के कमला नेहरू चिकित्सालय (kamla nehru hospital) के पीडियाट्रिक्स वार्ड में आग लगने से चार नवजात बच्चों की मौत हो गई. दोषियों पर कार्रवाई के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने कमेटी का गठन कर दिया. कार्रवाई कब होगी या यह भी ठंडे बस्ते में चली जाएगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एमपी में लचर अस्पताल व्यवस्थाओं से लगातार बच्चों की मौतें हो रही हैं. कहने को तो प्रदेश सरकार उत्तम इलाज का दावा करती है. यह उपचार केवल फाइलों में नजर आता है, लेकिन अस्पताल के वेंटिलेटर तक आते-आते दम तोड़ देता है.

एक माह पहले भी लगी थी आग
मध्य प्रदेश में आए दिन बच्चों की मौत के आंकड़े सामने आ रहे हैं. कभी डॉक्टरों की लापरवाही तो कभी अस्पताल का इंफ्रास्ट्रक्चर मौत का कारण बन रहा है. यह कोई पहला मामला नहीं है, जब राजधानी के नामी अस्पताल हमीदिया में आग लगने का मामला सामने आया हो. अब से ठीक एक माह पहले 7 अक्टूबर को भी अस्पताल की नई बन रही बिल्डिंग के दूसरे माले पर ठेकेदार के स्टोर रूम में आग लग गई. तब ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन आग जैसी गंभीर घटना घटी. इससे पता चलता है कि मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में आग से निपटने के कितने पुख्ता इंतेजाम हैं.

2020 में भी लचर व्यवस्थाओं की बलि चढ़े मासूम
अगर बात करें बच्चों की मौत की तो इस साल 2021 में बच्चों की मौतें के प्रमुख कारण अस्पताल परिसर में आग लगना, छज्जा गिरना, डॉक्टरों और नर्सों द्वारा सही उपचार नहीं करना, समय पर दवा नहीं मिलना और भी अन्य. पिछले साल 2020 में नवंबर तक अकेले शहडोल में 362 बच्चों की मौत हुई थी. यह बात खुद अस्पताल के सीएमएचओ ने स्वीकार की थी. हालांकि इन बच्चों में उमरिया और अनूपपुर से रेफर होने वाले बच्चे भी शामिल थे. शहडोल की तरह ही प्रदेश के अन्य जिलों का भी हाल रहा है. वहां भी औसतन इतने ही बच्चों की मौतें हुई हैं.

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बाल रोग विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहे अस्पताल
यही नहीं प्रदेश बाल रोग विशेषज्ञों की कमी से भी जूझ रहा है. कई बार प्रदेश के अस्पतालों में बाल रोग विशेषज्ञों की जगह जनरल फिजिश्यन ही इलाज कर रहे हैं. इसका खामियाजा बच्चों के परिजनों को उठाना पड़ रहा है. सुविधाओं के अभाव में मासूमों को जान से हाथ धोना पड़ता है. पिछले साल अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती 92 बच्चों की मौत हुई थी. जिनमें सबसे ज्यादा 65 मौतें नवंबर महीन में हुईं.

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