भोपाल।सियासत में जब राजनेता एक दूसरे का विरोध करते हैं और पक्ष विपक्ष में होते हैं, तो दुश्मन की तरह नजर आते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं कि सियासत में धुर विरोधी नजर आने वाले नेता एक दूसरे के करीबी दोस्त भी होते हैं, इन दिनों मध्य प्रदेश की राजनीति में यह नजारा देखने को मिल रहा हैं. जिस तरह से मध्य प्रदेश में उपचुनाव के हालात बने हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत की है, इन समीकरणों के चलते ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. राजस्थान की सीमा से लगे होने के कारण इस इलाके में गुर्जर मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. ऐसी स्थिति में गुर्जर मतदाताओं को रिझाने के लिए एक कांग्रेस ने सचिन पायलट को प्रचार के लिए बुलाया है. सचिन पायलट अपने प्रचार में मध्य प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को हटाने और कांग्रेस के साथ हुए धोखे पर बात कर रहे हैं, लेकिन सीधे तौर पर सिंधिया का नाम नहीं ले रहे हैं, वहीं ग्वालियर एयरपोर्ट पर दोनों की मुलाकात के भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
हालांकि उपचुनाव के खेल में जहां गुर्जरों को साधने के लिए कांग्रेस सचिन पायलट से प्रचार करा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ गुर्जरों को लुभाने के लिए बीजेपी राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम को आधार बनाकर सचिन पायलट की उपेक्षा का आरोप लगाकर गुर्जरों को रिझाने की कोशिश कर रही है. राजनीति से दूर सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया करीबी दोस्त हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि सियासत में ऐसी मुलाकातों और बयानों के विशेष मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए.
गुर्जरों को रिझाने कांग्रेस ने बुलाया सचिन पायलट को
मध्यप्रदेश में हो रहे 28 उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर चंबल इलाके में है, यह सिंधिया की रियासत का हिस्सा है. लेकिन राजस्थान की सीमा से लगे होने के कारण यहां गुर्जर मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. गुर्जर कई सीटों पर सीधे तौर पर चुनाव के फैसले को प्रभावित करते हुए नजर आते हैं और कई सीटों पर निर्णायक स्थिति में भी हैं. ऐसी स्थिति में सिंधिया के गढ़ में गुर्जर मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस ने राजस्थान के गुर्जर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी मित्र सचिन पायलट को जिम्मेदारी सौंपी है.
ग्वालियर चंबल में गुर्जर मतदाता करेंगे प्रभावित
ग्वालियर चंबल की जिन 16 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. उन सभी सीटों पर गुर्जर मतदाताओं की संख्या देखने को मिलती है. कई सीटें तो ऐसी हैं, जहां पर गुर्जर मतदाता जिस पार्टी के पक्ष में मतदान करने हैं, उसकी जीत सुनिश्चित है. कई सीटें ऐसी हैं, जहां गुर्जर मतदाता किसी दूसरी जाति के साथ युति बनाकर मतदान कर दें, तो जीत का फैसला इन्हीं वोटों से होगा.
गुर्जर बाहुल्य सीटें -
मुरैना सीट - करीब 7000 गुर्जर मतदाता.
सुमावली सीट - करीब 45000 गुर्जर मतदाता.
जौरा सीट - करीब 18000 गुर्जर मतदाता.
दिमनी सीट - करीब 17000 गुर्जर मतदाता.
अंबाह सीट - करीब 9000 गुर्जर मतदाता.
मेहगांव सीट - 27000 गुर्जर मतदाता.
गोहद सीट - करीब 23000 गुर्जर मतदाता.
ग्वालियर पूर्व सीट - करीब 10000 गुर्जर मतदाता.
डबरा सीट - करीब 10000 गुर्जर मतदाता.
ग्वालियर सीट - करीब 5000 गुर्जर मतदाता.
भांडेर सीट - करीब 10,000 गुर्जर मतदाता.
राजस्थान में बने बगावत के हालात को सचिन पायलट की उपेक्षा से जोड़ रही भाजपा
मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान में भी पिछले दिनों में कांग्रेस की सरकार में बगावत की स्थिति बन गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी दोस्त सचिन पायलट भी उन्हीं की तरह कांग्रेस से नाराज हो गए थे और बगावत पर उतर आए थे. लेकिन मध्यप्रदेश के प्रकरण से सीख लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस पहले से सजग थी और करीब एक महीने चले घटनाक्रम के बाद राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बच गई और सचिन पायलट भी वापस पार्टी में आ गए, लेकिन घटनाक्रम के दौरान जहां सचिन पायलट को सरकार में उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया, तो वहीं उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से भी हटा दिया गया. भाजपा अब इस मुद्दे को तूल दे रही है. भाजपा सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के मामले को गुर्जर समाज के अपमान के तौर पर प्रचारित कर रही है. ऐसे में भाजपा का मानना है कि सचिन पायलट जितना प्रचार करेंगे, गुर्जर मतदाता उतना कांग्रेस से नाराज होगा.
सहज मुलाकात के सियासी मायने निकालना गलत
मप्र कांग्रेस के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा सिंधिया-पायलट की मुलाकात पर कहते हैं, यह अचानक होने वाली भेंट है, कोई प्रायोजित भेंट नहीं है. लोग कह रहे हैं कि सचिन पायलट सिंधिया का नाम सभा में नहीं ले रहे हैं. तो हमारा सवाल है कि वह आए किसके लिए हैं और किस का प्रचार कर रहे हैं ? वह कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं, तो किस को हराने की अपील कर रहे हैं ? वह भाजपा और सिंधिया के समर्थकों को हराने की अपील कर रहे हैं. कुछ लोग गद्दारों का नाम लेना पसंद भी नहीं करते हैं. कुछ लोग अपनी बातों के जरिए गद्दारी बताते हैं, वह बता भी रहे हैं कि किसने प्रलोभन से सरकार गिराई और किसने सौदेबाजी की. किसने किसकी पीठ में छुरा भोंका. किसने छल बल से सरकार बनाई और कौन प्रलोभन दे रहा है. यह सारी बातें अपने भाषण में कर रहे हैं कि किसने सत्ता की हवस के लिए काम किया है, तो यह सब किसके लिए कह रहे हैं. वह सब सिंधिया के बारे में ही कह रहे हैं. प्रदेश का गद्दार कौन हैं, प्रदेश की जनता जानती है. यदि सचिन पायलट मुंह से नाम नहीं ले रहे हैं. तो प्रदेश की जनता को समझा तो रहे हैं कि मैं गद्दार के खिलाफ गद्दार को हराने के लिए आया हूं. आप सत्य का साथ दें, असत्य को हराएं. आप धर्म का साथ दें, अधर्म को हराए. सबसे वही कह रहे हैं. जरूरी नहीं हैं कि वह नाम लेकर ही किसी के बारे में कुछ कहें. किसी की रणनीति का हिस्सा होता है कि वह नाम ना लेकर आरोप लगाते हैं. भले वह नाम नहीं ले रहे हैं, लेकिन सब कुछ साफ-साफ कह रहे हैं.
सचिन पायलट के अपमान का बदला लेंगी गुर्जर समाज- भाजपा
मप्र भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया के मित्र बताए जाते हैं. उनका यहां प्रचार करना कांग्रेस के लिए हानिकारक होगा. क्योंकि यह वह चेहरा है, जो गुर्जर समाज के लिए यह बताने वाला है. यह व्यथा की कथा है. उनके साथ गुर्जर समाज के नेतृत्व के साथ कांग्रेस ने जिस प्रकार का हश्र किया, वह सबके सामने है. अब ना वो उप मुख्यमंत्री हैं और ना ही राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा पर आरोप लगाने का काम कांग्रेस ने किया है. इसलिए गुर्जर समाज भी उनसे नाराज है. कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए गुर्जर समाज तैयार बैठा है. सचिन पायलट उनके सामने सबसे बड़ा उदाहरण बनकर घावों को ताजा करने के लिए आए हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि यह समाज बीजेपी को वोट करेगा.
''दोनों मित्र एक ही दल में होते'' वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह कहते हैं ''राजनीति में निजी शत्रुता नहीं होती है. बीजेपी और कांग्रेस का सवाल है तो यह लोग नीति पर बात करेंगे, जो सुलझा हुआ नेता होता है, वह सिद्धांतों और नीति पर बात करता है. व्यक्तिगत हमले आमतौर पर सुलझे और बड़े नेता कम ही करते हैं. सिंधिया-पायलट की दोस्ती सबको पता है. परिस्थितिवश दोनों अलग-अलग पाले में हैं. अगर राजस्थान की स्थितियां ठीक होती, तो शायद सिंधिया और सचिन एक ही पाले में होते, कहा जाता है कि राजस्थान में महारानी ने रास्ते में रोड़े अटका दिए, नहीं तो सचिन और सिंधिया एक साथ होते.'' सौजन्य मुलाकात के सियासी मायने नहीं निकाले जाना चाहिए राघवेंद्र आगे कहते हैं, ''दूसरी बात यह है कि जहां तक सिंधिया से मुलाकात की बात है, तो दिल्ली में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की मुलाकात नहीं होती क्या? क्या सोनिया गांधी और अमित शाह मुलाकात नहीं करते हैं? राजनीति में छुआछूत का मामला हो, ऐसा मैंने नहीं देखा है, यदि कोई पक्ष में है और खिलाफ है, तो उससे कोई बात ना करें, हमने यह भी नहीं देखा है, जो प्रत्याशी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं. वह मिलने पर साथ में चाय पीते हैं, जहां तक सिंधिया और पायलट की मुलाकात की बात के मायने निकाले जाने का मैं कोई मतलब नहीं मानता हूं.''